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गन्ने की खेतीः

Publish Date : 05/10/2020
Cane

 

Cane Farming

        विश्व के कुल 114 देशो में चीनी का उत्पादन दो स्रोतो गन्ना व चकुन्दर द्वारा किया जाता है। गन्ना उपोष्ण देशों में उगाया जाता है। भारत वर्ष में केवल गन्ने के द्वारा ही चीनी निर्मित होती हैं गन्ने के क्षेत्रफल में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है] परन्तु चीनी उत्पादन में ब्राजील के बाद दुसरा स्थान है। हमारे देश में गन्ना एक नकदी फसल है जिसकी खेती प्रति वर्ष लगभग 30 लाख हेक्टेयर भू-क्षेत्र में की जाती है। उत्तर प्रदेश में गन्ने की औसत उपज 81-1 टन प्रति हेक्टेयर है।

         उपोष्ण क्षेत्र में अधिकांशतः गन्ने की खेती चिकनी जलोढ़ भूमि मंे की जाती है जिसमें पानी रोकने की पर्याप्त क्षमता होती है इन क्षेत्रों में गन्ने की खेती मौसम के अनुकूल दशाओं में जैसे गर्म व सूखा एवं नम और ठण्ड़ी में की जाती है। गन्ने की वृद्वि के लिए अनुकूल समय केवल जुलाई से अक्टूबर तक रहता है। बलुई दोमट भूमि में गन्ने की खेती सामान्यतः की जाती है जिसकी मृदा नमी 12-15 प्रतिशत हो।

 

क्षेत्र शीघ्र पकने वाली प्रजाति मध्य व देर से पकने वाली प्रजाति
सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश हेतु को.शा.8436] 88230] 95255] 96268] 08272]98014]05125] सी.ओ.एल.के. 94184]को.0238 एवं को.पन्त 0118 को.शा.767] 8432] 88216] 97264]9232]08279]08452]08276] को.शा. 96275] 97261] को.से. 95422 एवं को.शा. 99259 तथा यू.पी. 0097
पूर्वी क्षेत्र हेतु सभी क्षेत्रों के लिए शीघ्र पकने वाली प्रजातियों के साथ-साथ को.से. 95436] 98321] 00235] 01235 सभी क्षेत्रों के लिए स्वीकृत प्रजातियों के साथ-साथ को.से. 95427] 96436 एवं यू.पी. 22
मध्य क्षेत्र हेतु सभी क्षेत्रों के लिए स्वीकृत शीघ्र पकने वाली प्रजातियों के साथ-साथ को.जे. 64,      को.से. 00235, 01235 सभी क्षेत्रों के लिए स्वीकृत प्रजातियों के साथ-साथ को.शा. 91230 यू.पी. 39  को.शा. 94257 एवं को.पन्त 84212
पश्चिमी क्षेत्र हेतु सभी क्षेत्रों के लिए स्वीकृत शीघ्र पकने वाली प्रजातियों के साथ-साथ को.शा.88230] 95255]96268] 08272] 98014] 05125 सभी क्षेत्रों के लिए स्वीकृत प्रजातियों के साथ-साथ को.शा.767] 8432] 88216] 97264]9232]08279]08452] 08276 एवं  यू.पी. 39 तथा  को.पन्त 84212

 

वैज्ञानिक ढंग से गन्ने की खेती

बुवाई का उपयुक्त समयः-

शरदकालः-                         -मध्य सितम्बर से अक्टूबर।

बसंतकाल-                    -पूर्वी क्षेत्र    -मध्य जनवरी से फरवरी।

                                           –मध्य क्षेत्र     -फरवरी से मार्च।

                          –                पश्चिमी क्षेत्र   -मध्य फरवरी से मध्य अप्रैल।

बीज गन्ना चुनाव व मात्राः-

शुद्व, रोग व कीट मुक्त, प्रचुर मात्रा में खाद व पानी प्राप्त खेत (पौधशाला) से बीज का चुनाव करें। गन्ने केे ऊपरी 1/3 भाग का जमाव अपेक्षाकृत अच्छा होता है। गन्ने की मोटाई के अनुसार 50-60 कुन्तल (लगभग 37.5 हजार तीन-तीन आँख के या 56.00 हजार दो-दो आँख के पैंड़े प्रति हेक्टेयर) बीज की आवश्यकता पड़ती है। देर से बुवाई करने पर उपरोक्त का डे़ढ़ गुना बीज की आवश्यकता होती है।

बीज उपचारः-

परायुक्त रसायन जैसे एरीटान 6 प्रतिशत या एगलाल 3 प्रतिशत की क्रमशः 280 ग्राम या 560 ग्राम अथवा बाविस्टन की 112 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर को 112 लीटर पानी में घोल बनाकर गन्ने के पैंड़ों को डुबोकर उपचारित करना चाहिए।

भूमि उपचारः-

दीमक एवं आंकुर बेधक नियंत्रण हेतु क्लोरोपाईरीफाॅस 20 प्रतिशत ई.सी. घोल 1.5 ली./हे. की दर से 800-1000 ली0 पानी में घोलकर अथवा फोरेट-10 जी का या दीमक नियंत्रण हेतु फेनक्लरेट 0.4 प्रतिशत धूल 25 किग्रा./हे. पैंड़ों पर बुरककर ढ़काई करनी चाहिए।

पंक्ति से पंक्ति की दूरीः-

शरद बुवाई  –120 से 150 सेमी.

बसंत बुवाई  –120 से 150 सेमी.

देर से बुवाई –90 से 120 सेमी.

 

पैंड़े से पैंड़े की दूरीः-प्रति 20 सेमी. की दूरी में दो आँख का एक पैंड़ा ड़ालना चाहिए।

खाद की मात्राः-

नत्रजन     –  150  –  180 किग्रा./हे.

फास्फोरस   –   60  –   80 किग्रा./हे.

पोटास      –   20  –   40 किग्रा./हे.

जिंक सल्फेट –   25 किग्रा./हे.

प्रयोग समयः-

नत्रजन उर्वरक की कुल मात्रा का 1 :3 भाग तथा 60 से 80 किग्रा. फास्फोरस एवं 20-40 किग्रा. पोटाश तत्व रूप में प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व कूड़ो में ड़ालना चाहिए। नत्रजन की शेष दो-तिहाई मात्रा दो समान हिस्सों में जून से पूर्व (ब्यातकाल) प्रयोग करना चाहिए। जिंक सल्फेट की तैयारी के समय या प्रथम सिंचाई के बाद ओट आने पर पौधों के पास देकर गुड़ाई करना चाहिए।

गन्ने के साथ अन्तः फसलें

अन्तः फसलों का चुनावः-

गन्ना के साथ अन्तः खेती के लिए कम समय में पकने वाली उन्हीं फसलों का चुनाव करना चाहिए जो क्षेत्र की जलवायु मिट्टी एव कृषि निवेशों की उपलब्धता तथा स्थानीय मांगो के अनुरूप हो जिनमें वृद्वि प्रतिस्पर्धा न हो तथा जिसकी छाया से गन्ना फसल पर विपरीत प्रभाव न पड़ता हो।

प्रमुख अन्तः फसलेंः-

(क)    शरदकालीन-

मटर(फली), आलू, लाही, राई, प्याज, मसूर, धनिया, लहसुन, मूली, गोभी, शलजम आदि।

(ख)    बसन्तकालीन-

उरद, मूंग, भिण्ड़ी तथा लोबिया (चारे व हरी खाद के लिए)।

गन्ने की खेती में ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण बातेंः-

1-       अन्तः फसलों के लिए अलग से संस्तुति अनुसार उर्वरकों की समय से पूर्ति करनी चाहिए।

2-       अन्तः फसलें काटने के बाद शीघ्र अतिशीघ्र गन्ने में सिंचाई व नत्रजन की टापड्रेसिंग करके गुड़ाई की जानी चाहिए।

3-    रिक्त स्थानों में पहले से अंकुरित गन्ने के पैड़ों से गैप फिलिंग करनी चाहिए।

4-      जल ठहराव की अवस्था में अविलम्व जल निकास का प्रबन्ध करना चाहिए।

5-        नमी का संरक्षण व खरपतवार नियंत्रण हेतु जमाव पूरा होने के पश्चात रोग/कीटमुक्त गन्ने की पताई की 10 सेमी. मोटी तह पंक्तियों के बीच में बिछानी चाहिए।

6-        सीमित सिंचाई साधन की स्थिति में एकान्तर नालियों में सिंचाई करना लाभकारी पाया गया है।

7-        गामा बी.एच.सी. का प्रयोग क्षारीय भूमि में नही करना चाहिए।

8-       चोटीबेधक कीट के नियंत्रण हेतु अपै्रल-मई माह में कीट ग्रसित पौधों को खेत से निकालते रहे तथा जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक खेत में पर्याप्त नमी होने की दशा में 30 किग्रा./हे. की दर से कार्बोफ्यूरान 3जी गन्ने की लाइनों में ड़ालें।

9-     जलप्लावित क्षेत्रों में युरिया का 5 से 10 प्रतिशत पर्णीय छिड़काव लाभदायक पाया गया है।

10-      वर्षाकाल में 20 दिन तक वर्षा न होने पर सिंचाई अवश्य करनी चाहिए।

गन्ने के प्रमुख नाशीकीटों की पहचान एवं रोकथाम के उपायः-

1-      दीमकः-

यह कीट बुवाई से कटाई तक फसल की किसी भी अवस्था में लग सकता है। दीमक पैड़ो के कटे सिरों, पैडों की आँखों, किल्लों की जड़ से तथा गन्ने को भी जड़ से काट देता है एवं कटे स्थान पर मिट्टी भर देता है।

रोकथामः-

बोते समय गन्ने पैड़ों के ऊपर निम्न कीटनाशकों में से किसी भी एक का प्रयोग का ढ़क देना चाहिए।

         1-बुवाई से पूर्व खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए।

         2-खेत में कच्चे गोबर का प्रयोग नही करना चाहिए।

         3-फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए।

         4-नीम की खली 10 कुन्तल प्रति हे. की दर से बुवाई से पूर्व मिलाने से खेत में दीमक नही लगती।

         5-कूडों में फेनवलवेट 0.4 प्रतिशत धूल 25 कि.ग्रा. प्रति हे. की दर से या इमिडाक्रोपिड 17.18 एस.एल मि.ली. में अथवा क्लोरोफाइरिफास 20 प्रतिशत ई.सी. 2.05 ली. प्रति हे. की दर से प्रयोग करना चाहिये।

2-      अंकुर भेदकः-

यह गन्ने के किल्लों को प्रभावित करने वाला प्रमुख कीट है तथा इस कीट का प्रकोप गर्मी के महीनों (मार्च से जून तक) में अधिक होता हैै।

पहचानाः-सूखी गोफ का पाया जाना खीचने पर आसानी से निकल आना, उसमें सिरके जैसी बदवू आना।

रोकथाामः-

         1-क्लोरोपाइरिफास 20 प्रतिशत घोल 1.05 ली. प्रति हे. को 1000  पानी में बनाकर छिडकाव करें।

         2-फोरेट 10 प्रतिशत सी.जी. 25 कि.ग्रा./हे. की दर से बुवाई के समय कूडों में डालकर ढक देना चाहिये।

3-       चोटी भेदक

पहचानः-यह कीट मार्च से सितम्बर तक लगता है, इसमें भी गोफ पाया जाता है। गोफ के किनारे की पत्तियों पर गोल-गोल छेद का पाया जाना।

रोकथाामः-

         1-मार्च से मई तक अण्डों को एकत्रित कर नष्ट कर देना चाहिये।

          2-प्रभावित पौधों को काटकर खेत से निकाल देना चाहिये।

          3-जून-जुलाई में कार्बोफयूरान 3 प्रतिशत 30 कि.ग्रा./हे. की दर से पौधों की जडों के पास बुरकना चाहिये।

4-        तना बेधक

पहचानः-यह कीट गन्ने के तनों में छेद करके अन्दर प्रवेश कर जाता है, गन्ना फाडने पर लाल दिखाई देता है।

रोकथाामः-

         1-रोग से प्रभावित खेत में कटाई के पश्चात पत्तियाॅ एवं ठुंठों का जलाकर नष्ट कर देना चाहिये तथा खेत की गहरी जुताई करनी चाहिये।

          2-क्लोरोपाइरिफास 20 प्रतिशत घोल 1.05 ली./हे. को 1000 पानी में बनाकर छिडकाव करें।

          3-जून-जुलाई में कार्बोफयूरान 3 प्रतिशत 30 कि.ग्रा./हे. की दर से पौधों की जडों के पास बुरकना चाहिये।

5-       गुरदासपुर बेधक

पहचानः-इस कीट का प्रकोप जुलाई से अक्टूबर तक होता है। सूंडी ऊपर से दूसरी या तीसरी पोरी में प्रवेश कर अन्दर ही अन्दर स्पिं्रग की तरह घुमावदार काटना आरम्भ कर देती है। गन्ने अन्दर से खोखले हो जाते है तथा तेज हवा के झटके से टूटकर अलग हो जाते है।

रोकथाामः-

         1-रोग से प्रभावित खेत में कटाई के पश्चात पत्तियाॅ एवं ठुंठों का जलाकर नष्ट कर देना चाहिये तथा खेत की गहरी जुताई करनी चाहिये।

          2-क्लोरोपाइरिफास 20 प्रतिशत घोल 1.05 ली./हे. को 1000 पानी में बनाकर छिडकाव करें।

          3-कार्बोफयूरान 3 प्रतिशत 30 कि.ग्रा./हे. की दर से पौधों की जडों के पास बुरकना चाहिये।

          4-पोरेट 10 प्रतिशत सी.जी. 30 कि.ग्रा./हे. की दर से बुरकाव करना चाहिये।

6-      पायरिला

पहचानः-यह कीट हल्के भूरे रंग का 10-12 मीमी. लम्बा होता है। इसका सिरा लम्बा व चोंचनुमा होता है। इसके शिशु तथा व्यस्क गन्ने की पत्ती से रस चूस कर क्षति पहुॅचाते है।

रोकथाामः-

         1-अण्डे समूह को निकालकर नष्ट कर देना चाहियें।

           2-फसल वातावरण में पायरिया कीट के परजीवी एपीरिकेनिया मेलोनोल्यूका का संरक्षण प्रदान करना चाहिये। परजीवी कीट की पर्याप्त उपस्थित में कीट की स्वतः रोकथाम हो जाती है। यदि परजीवी पायरिला प्रभावित खेत में दिखायी दे तो किसी भी कीटनाशक का प्रयोग नही करना चाहियें।

रोग प्रबन्धनः-

        1-लाल सडन, कडॅुवा, घासी प्ररोह रोग आदि रोगों के लक्षण पहलीवार नजर आते हीे संक्रमित पौधों को उखाडकर नष्ट कर देना चाहिये।

         2-बुवाई के समय गन्ने के पेंडो को बाविस्टीन इत्यादि जैसी कवक नाशकों से उपचारित करना चाहिये।

         3-बुवाई के पश्चात रीडोमिल और बाविस्टीन का प्रयोग करना चाहिये।

लाल सडन

पहचानः-रोगी पौधों की ऊपरी दो-तीन पत्तियों के नीचे की पत्तियाॅ किनारे से पीली पडकर सूखने लगती तथा झुक जाती है। पत्तियाॅ का मध्य सिरा लाल कत्थई धब्बों का दिखना और बाद में राख के रंग का होना तना फाडकर देखने से ऊतक चमकीला लाल व सफेद रंग की आडी-तिरछी पट्टी दिखायी देती है और रोगी पोधे से शराब या सिरका जैसी गंध आती है।

रोकथाामः-

        1-रोग अवरोधी किस्मों का चयन करना।

          2-बुवाई के समय एम.एच.ऐ.टी. से 54 डिग्री सेंटीग्रेट 4 घण्टे तक बीज उपचार करें।

          3-बीज उपचार कार्बनडाजिम या वीटावैक्स पावर 2 ग्राम/ली. पानी घोल में 20 मिनट तक उपचार करें।

ग्रासी सूट-गन्ने का तना पतला और नीचे से एक साथ घास जैसे किल्लों का निकनला, रोगी पौधा छोटा, पत्तियाॅ हल्की पीली सफेद, गठानों की दूरी कम, खडे गन्ने में आॅखों से अंकुर होना।

रोकथाामः-

        1-रोग अवरोधी किस्मों का चयन करना।

         2-बुवाई के समय एम.एच.ऐ.टी. से 54 डिग्री सेंटीग्रेट 4 घण्टे तक बीज उपचार करें।

         3-पोशक तत्वों का सन्तुलन उपयोग करें।

उकठाः-प्रभावित पौधों की बडवार कम, पत्तियों तथा पौधों में पीलापन या सूखना, पौधों को चीरकर देखने पर गाॅठों के पास मटमैला दिखना और गन्ना अन्दर से खोखला पड जाता है।

रोकथाामः-

        1-रोग अवरोधी किस्मों का चयन करना।

         2-बुवाई के समय एम.एच.ऐ.टी. से 54 डिग्री सेंटीग्रेट 4 घण्टे तक बीज उपचार करें।

          3-उचित जल निकास करें।

गन्ने की कटाईः-फसल की कटाई उस समय करें, जब गन्ने में सुक्रोच की मात्रा सबसे अधिक हो। कटाई पूर्व पकाव सर्वेक्षण करे] इस हेतु रिफलेक्टो मीटर का उपयोग करें यदि माप 18 या उसके ऊपर है तो गन्ना परिपक्व होने का संकेत है। गन्ने की कटाई गन्ने की सतह से करें।

पैदावारः-गन्ना उत्पादन में उपरोक्त उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग कर लगभग 1000 से 1500 कु./हे. तक गन्ना प्राप्त किया जा सकता है।

     

अधिक उपज प्राप्त करने हेतु प्रमुख बिन्दु

      1-स्वीकृत किस्मों (शीघ्र पकने वाली) का उपयोग करें।

       2-गन्ना फसल हेतु 8 माह की आयु का ही गन्ना बीज उपयोग करे।

       3-शरद कालीन गन्ना 15 अक्टूबर से 15 नबम्वर तक ही बुवाई करें।

       4-गन्ने की बुवाई लाईन से लाईन 120 से 150 से.मी. दूरी पर बुवाई करें।

       5-बीज उपचार करके बुवाई करें।

       6-पेडी प्रबन्धन हेतु गन्ने की कटाई जमीन की सतह से करें तथा फफूंदनाशक व कीटनाशक से उपचार करें] गेप फिलिंग] सन्तुलित उर्वरक का उपयोग करें।

        7-सहफसली अपनायें तथा खरपतवार] कीट व रोग नियंत्रण करें।