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कृषि विभाग

बाजरा की उन्नतशील खेती

Bajra Bajra

 

परिचय

कम वर्शा वाले स्थानों तथा रेतीली जमीन पर बाजरा की खेती अच्छी होती है कुल 43.98 हे0 पर बाजरा की खेती की जाती है। कुल उत्पादन 73.62 मै0टन तथा उत्पादकता 16.74 प्रति हे0 है। बाजरा की खेती षाहबाद, सैदनगर एवं चमरव्वा विकास खण्ड में की जाती है।

भूमि का चुनाव

बाजरा के लिए हल्की या दोमट बलुई मिट्टी उपयुक्त होती है।भूमि का जल निकासउत्तम होना आवश्यकहै।

प्रजातियां

 

() संकुल प्रजाति आई.सी.एम.बी.-155 डब्ल्यू.सी.सी.-75 आई.सी.टी.पी.-8203 राज 171 बीज का बाजार मुल्य (रू0/किग्रा0)
पकने के अवधि 80-100 85-90 70-75 70-75 40
ऊँचाई (सेमी.) में 200-250 185-210 70-95 150-210 40
दाने की उपज कुल/ हे. 18-24 18-20 16-23 18-20 40
सूखे चारे की उपज कुल/हे. 70-80 85-90 60-65 50-60 40
() संकर प्रजाति पूसा 322 पूसा 23 आई.सी.एम.एच. 451 280
पकने के अवधि 75-80 80-85 85-90 280
ऊंचाई (सेमी.) में 150-210 180-210 175-180 280
दाने की उपज कुल/हे. 25-30 17-23 20-23
बाली के गुण 40-50 40-50 50-60
बाली के गुण मध्यम ठोस मध्यम ठोस मोटा ठोस

खेत की तैयारी :

पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा अन्य 2-3 जुताइयां देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करके खेत तैयार कर लेना चाहिए।

बुवाई का समय तथा विधि :

बाजरे की बुवाई जुलाई के मध्य से अगस्त के मध्य तक सम्पन्न कर ले। बुवाई 50 सेमी की दूरी पर 4 सेमी गहरे कूड में हल के पीछे करें।

बीजदर :4-5 किलो ग्राम प्रतिहे0

बीज का उपचार :-

यदि बीज उपचारित नहीं है तो बो ने से पूर्व एक किग्रा0 बीज को एक प्रतिशत पारायुक्त रसायन याथिरम के 2.50 ग्राम से शोधित कर लेना चाहिए। अरगट के दानो को 20 प्रतिशत नमक के घोल में डुबोकर निकला जा सकता हैA

उर्वरको का प्रयोग :

भूमि परिक्षण के आधार पर उर्वरको का प्रयोग करें। यदि भूमि परिक्षण के परिणाम उपलब्ध न हो तो संकर प्रजाति के लिए 80-100 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 40 किलो ग्राम फास्फोरस एवं 40 किलो ग्राम पोटाश तथा देशी प्रजाति के लिए 40-50 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 25 किलो ग्राम फास्फोरस तथा 25 किलो ग्राम पोटाश प्रतिहे. प्रयोग करें।फास्फोरस पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई से पहली ड्रेसिंग और शेष आधी मात्रा टापड्रेसिंग के रूप में जब पौधे 25-30 दिन के हो, देनी चाहिए ।

सिंचाई :

खरीफ में फसल की वुबाई होने के कारण वर्षा का पानी ही उसके लिए पर्याप्त होता है। इसके अभाव में 1 या 2 सिंचाई फुल आने पर आवश्यकतानुसार करनी चाहिए।

छटनी (थिंनिग) तथा निराईगुड़ाई :

बुवाई के 15 दिन बाद कमजोर पौधों को खेत से उखाड़कर पौधे से पौधे की दूरी 10 -15 से.मी. कर ली जाये। साथ ही साथ घने स्थान से पौधे उखाड़कर रिक्त स्थानों पर रोपित कर लें, खेत में उगेखर पतवारों को भी निराई-गुड़ाई करके निकाल देनाचाहिए एट्राजीन 50 % को 1.5-2.0 कि.ग्रा./हे. कीदरसे 700-800 ली. पानी में मिलाकर वुबाई के बाद व जमाव से पूर्व एक समान छिडकाव करें। इनसे अधिकतर खरपतवार समाप्त हो जाते हैं

रोग:

 

बाजरा का अरगट:

पहचान: यह रोग केबल भुट्टों के कुछ दानो पर ही दिखाई देता है इस मेंदाने के स्थान पर भूरे काले रंग केसींक के आकार की गांठें बन जाती हैं जिन्हें स्केलेरेशिया कहते हैं | संक्रमित फूलों में फफूंद विकसित होती है जिनमे बाद में मधुरस निकलता है।प्रभावित दाने मनुष्यों एवं जानवरों के लिए हानिप्रद होते हैं।

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उपचार:

  1. यदि बीज प्रमाणित नहीं हो तो बोने से पहले 20% नमक के घोल में बीज डुबोकर तुरंत स्केलेरेशिया को स्वयं अलग कर देना चाहिए तथा शुद्ध पानी से 4-5 बार प्रयोग किया जाय। खेत में गर्मी की जुताई अवश्य करें।
    2. फसल से फुल जाते ही निम्न फफूंद नाशकों में से किसी एक का छिड़काव 5-7 दिन के अंतर पर करना चाहिए।
    (अ) जीरम 80% घुलनशील चूर्ण 2.00 कि.ग्रा. अथवा जीरम 27% तरल को 3.0 ली.। बाजार मूल्य

350/कि.ग्रा.।
(ब) मैन्कोजेब घुलनशील चूर्ण 2.0 कि. ग्रा./हे.।
(स) जिनेब 75 % घुलनशील चूर्ण 2.0 कि.ग्रा. / हे.।

2. बाजरा का कंदुआ :

 

पहचान: कंदुआ रोग से बीज आकर में बड़े गोल अंडाकार हरे रंग के होते हैं, जिसमे पीला चूर्ण भरा रहता है।

बाजरा का कंदुआ :

 

पहचान: कंदुआ रोग से बीज आकर में बड़े गोल अंडाकार हरे रंग के होते हैं, जिसमे पीला चूर्ण भरा रहता है।

उपचार:

  1. बीज शोधित करके बोना चाहिए।
    2. एक ही खेत में प्रतिवर्ष बाजरा की खेती नहीं करनी चाहिए।
    3.रोग ग्रसित वालिओं को साबधानीपूर्वक निकलकर जला देना चाहिए।

कटाई तथा मढ़ाईः- फसल पकने पर षीघ्र कटाई कर लेनी चाहिए देर से कटाई करने पर दाने बाली से गिरने लगते है। टैªक्टर चालित थै्रसर से मढाई की जाती है।
विपणनः- लम्बे समय तक संग्रहण करने के लिये दानों में नमी 10-12 प्रतिषत से अधिक नहीं होनी चाहिए। उपज का विपणन स्थानीय बाजार/मण्डी में किया जा सकता है।

 

बाजरा लागत प्रति हे0 (रूपये में)
जुताई 2 जुताई 2.50 घन्टा प्रति हे0 प्रति जुताई / 450 प्रति घन्टा 2250
  पाटा लगाना 1200
योग 3450
बीज 5 किग्रा0 / 40.20 रू0 प्रति किग्रा0 201
सिंचाई दो सिंचाई, 15 घन्टे प्रति हे0 / 100 रू0 प्रति घन्टा 3000
बुवाई 4 श्रमिक प्रति हे0 /  300 रू0 प्रति श्रमिक 1200
योग 4401
उर्वरक डी0ए0पी0 88 किग्रा0 / 23.00 रू0 प्रति किग्रा 2024
  यूरिया 175 किग्रा0 / 5.92 रू0 प्रति किग्रा 1042
  पोटाश 40 किग्रा0 / 19 रू0 प्रति किग्रा 760
योग 3826
कृषि रक्षा रसायन  
बीज शोधन र्कोन्डाजिम 12.5 ग्राम / 386 रू0 प्रति किग्रा0 5
इन्डोफिल एम-45 2 किग्रा0 / 253 रू0 प्रति किग्रा0 506
सेडोमोनास 2.5 किग्रा0 / 100 रू0 प्रति किग्रा0 250
कीटनाशक क्यूनाल फॉस 1.5 लीटर / 419 रू0 प्रति किग्रा 629
योग 1390
कटाई मढ़ाई आदि 24 श्रमिक / 300 रू0 प्रति श्रमिक 7200
अन्य व्यय 3000
योग 10200
महायोग 23267

 

उत्पादन – 25 कु0 प्रति हे0

न्यूनतम बिक्री मूल्य – 2000 रूपये प्रति कु0

उपज से प्राप्त कुल धनराशि – 25x2000= 50000 रूपये

शुद्ध लाभ – 50000-23267 = 26733 रूपये

लाभ-लागत अनुपात = 1:1.14

धान की खेती

dhan1 Dhan

 

धान या चावल ;च्ंककलद्ध रामपुर की महत्वपूर्ण खाद्य फसल है। धान की खेेती 1.42 लाख हे0 क्षेत्रफल में की जाती है। धान का कुल उत्पान 427218 मै0टन है तथा औसत उत्पदकता 29.52 कु0 प्रति हे0 है। चावन में प्रोटिन 6-7 प्रतिषत् तथा वसा 2-2.5 प्रतिषत् होती है। चावल में विटामिन बी अधिक मात्रा में पायी जाती है। धान की खेती मुख्यता बिलासपुर, स्वार, मिलक तथा षाहबाद सैदनगर तथा चमरव्वा में थोड़े क्षेत्रफल पर की जाती है।

 

जलवायु

धान मुख्यतः उष्ण एवं उपोष्ण जलवायु की फसल है. धान को उन सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है, जहां 4 से 6 महीनों तक औसत तापमान 21 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक रहता है. फसल की अच्छी बढ़वार के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तथा पकने के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है. रात्रि का तापमान जितना कम रहे, फसल की पैदावार के लिए उतना ही अच्छा है. लेकिन 15 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरना चाहिएA

उपयुक्तभूमि

धान की खेती के लिए अधिक जलधारण क्षमता वाली मिटटी जैसे- चिकनी, मटियार या मटियार-दोमट मिटटी प्रायः उपयुक्त होती हैं. भूमि का पी0एच0 मान 5.5 से 6.5 उपयुक्त होता है. यद्यपि धान की खेती 4 से 8 या इससे भी अधिक पी0एच0 मान वाली भूमि में की जा सकती है, परंतु सबसे अधिक उपयुक्त मिटटी पी0एच0 6.5 वाली मानी गई है.

फसलचक्

उत्तरी भारत की गहरी मिटटी में धान काटने के बाद आलू, बरसीम, चना, मसूर, सरसों, लाही या गन्ना आदि को उगाया जाता है. उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में सिंचाई, विपणन आदि की सुविधा उपलब्ध होने पर एक वर्षीय फसल चक्र–

  1. धान – गेहूं – लोबिया/उड़द / मूंग (एक वर्ष)
  2. धान – सब्जीमटर – मक्का (एक वर्ष)
  3. धान – चना – मक्का + लोबिया  (एक वर्ष)
  4. धान – आलू – मक्का (एक वर्ष)
  5. धान – लाही – गेहूं (एक वर्ष)
  6. धान – लाही – गेहूं – मूंग (एक वर्ष)
  7. धान – बरसीम (एक वर्ष)
  8. धान – गन्ना – गन्ना पेड़ी – गेहूं – मूंग  (तीन वर्ष)
  9. धान – गेहूं  (एक वर्ष)
  10. धान – सब्जी मटर – गेहूं –  मूंग  (एक वर्ष)

उन्नत किस्में

क्र.सं. किस्म का नाम पकने की अवधि (दिन) उत्पादकता (कु0/हे0) मूल्य (रामपुर में) मूल्य (रामपुर से बहार)
1 पूसा बासमती 1509 115-120 50-50 47 47 बरेली में
2 पूसा-1612 120-125 55-60 22 22 बरेली में
3 पूसा बासमती-6 150-155 50-50 48 48 बरेली में
4 उन्नत पूसा बासमती-1 135-140 55-60 48 48 बरेली में
5 पूसा सुगन्ध-5 120-125 55-60 48 48 बरेली में
6 पूसा बासमती-1121 140-145 55-60 48 48 बरेली में
7 पूसा आर.एच.-10
110-115 40-45 235 235 बरेली में
8 पूसा सुगन्ध-3 125-130 55-60 33 33 बरेली में
9 पन्त संकर धान-1
115-120 65-70 225 220 बरेली में
10 नरेन्द्र संकर धान-1 125-130 60-65 215 210 बरेली में
11 प्रोएग्रो 6444 135-140 60-65 288 288 बरेली में
12 प्रोएग्रो 6429 115-120 55-60 288 288 बरेली में

खेत की तैयारी और बुवाई

धान की खेती मुख्य रूप से निचली भूमियों में की जाती है. साथ ही धान को ऊंची भूमियों और गहरे पानी में भी उगाया जाता है. धान उगाने की विभिन्न विधियों में से उत्तरी भारत के लिए धान सघनता पद्धति, एरोबिक धान पद्धति और रोपाई विधि अधिक महत्वपूर्ण है। अतःउपरोक्त तीनों विधियों का उल्लेख विस्तार से इस प्रकार है.

धान सघनता विधि (एस.आर.आई पद्धति)

  1. इस पद्धति को सिस्टम ऑफ राइस इन्टेंसिफिकेशनया एस-आर- आई. या धान सघनता पद्धति के नाम से जाना जाता है. इस पद्धति से धान उगाने के लिए पौध की रोपाई योग्य उम्र 8 से 10 दिन या अधिकतम 14 दिन संस्तुत की गई है. इस अवस्था की पौध को उखाड़ने और खेत में लगाने के बीच कम से कम समय होना चाहिए.
  2. खेत की तैयारी परंपरागत तरीके से की जाती है. खेत में पानी खड़ा कर के मिट्टी पलटने वाले हल या पडलर से 2 से 3 बार जुताई कर के पाटा लगा देते हैं.
  3. पौध की रोपाई 25 X 25 सेंटी मीटर अंतरणपर की जाती है एवं एक स्थान पर एक ही पौधा रोपा जाता है. इस विधि की मुख्य विशेषता यह है कि खेत में खड़ा हुआ पानी नहीं रखना है. खेत को हमेशा नमीयुक्त रखना आवश्यक है. बार-बार कुछ अंतराल पर हल्की सिंचाई करना तथा खेत को पानी रहित रखना पड़ता है. ताकि मिट्टी में पर्याप्त वायु संचार हो सके.
  4. खरपतवार समस्या से निजात पाने के लिए हस्तचालित या शक्तिचालित ‘रोटेटिंग हो’ का प्रयोग संस्तुत किया गया है. इस विधि से खरपतवार नियंत्रण के साथ-साथ मिट्टी में वायु संचार भी बढ़ता है. जिससे जड़ों का विकास अच्छा होता है साथ ही खरपतवार मिट्टी में मिल जाने के बाद उस मे जैव-पदार्थ की मात्रा बढ़ाते हैं, जो कि लाभदायक जीवों की संख्या में वृद्धि करता है.
  5. धान सघनता पद्धति में पोषक तत्वों की पूर्ति जैविक स्रोतों जैसे कम्पोस्ट, गोबर की खाद और हरी खाद आदि से की जानी चाहिए. यदि जै विकस्रोत पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न हों तो आवश्यक पोषकतत्वों की आपूर्ति उर्वरकों और जैविक स्रोतों दोनों के एकीकृत प्रयोग द्वारा की जा सकती है.
  6. इस विधि से धान उगाने के अनेक लाभ संज्ञान में आए हैं. उदाहरणार्थ परंपरागत तरीके से धान उगाने की तुलना में धान सघनता पद्धति से उगाने पर 1.5 से 3.0 गुनी तक अधिक पैदावार दर्ज की गई है. साथ ही परंपरागत धान पद्धति से धान उगाने की तुलना में धान सघनता पद्धति में 30 से 40 प्रतिशत कम पानी की आवश्यकता होती हैA

रोपाई विधि हेतु बीज की मात्रा और उपचार

रोपाई विधि हेतु बीज की मात्रा- बुवाई से पहले स्वस्थ बीजों की छंटनी कर लेनी चाहिए. इसके लिए 10 प्रतिशत नमक के घोल का प्रयोग करते हैं. नमक का घोल बनाने के लिए 2.0 किलोग्राम सामान्य नमक 20 लीटर पानी में घोल लें एवं इस घोल में 30 किलोग्राम बीज डालकर अच्छी तरह हिलाएं, इससे स्वस्थ और भारी बीज नीचे बैठ जाएंगे तथा थोथे एवं हल्के बीज ऊपर तैरने लगेंगे. इस तरह साफ व स्वस्थ छांटा हुआ 20 किलोग्राम बीज महीन दाने वाली किस्मों में तथा 25 किलोग्राम बीज मोटे दानों की किस्मों में एक हेक्टेयर की रोपाई के लिए पौध तैयार करने के लिए पर्याप्त होता है.

उपचार बीज उपचार के लिए 10 ग्राम बॉविस्टीन और 2.5 ग्राम पोसामाइसिनया 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाईक्लीन या 2.5 ग्राम एग्रीमाइसीन 10 लीटर पानी में घोल लें. अब 20 किलोग्राम छांटे हुए बीज को 25 लीटर उपरोक्त घोल में 24 घंटे के लिए रखें. इस उपचार से जड़ गलन, झोंका और पत्ती झुलसा रोग आदि बीमारियों के नियन्त्रण में सहायता मिलती है.

धान की नर्सरी की तैयारी

  1. नर्सरी ऐसी भूमि में तैयार करनी चाहिए जो उपजाऊ, अच्छे जल निकास वाली व जल स्रोत के पास हो. एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की रोपाई के लिए 1/10 हेक्टेयर (1000 वर्गमीटर) क्षेत्रफल में पौध तैयार करना पर्याप्त होता है.
  2. धान की नर्सरी की बुवाई का सही समय वैसे तो विभिन्न किस्मों पर निर्भर करता है. लेकिन 15 मई से लेकर 20 जून तक का समय बुवाई के लिए उपयुक्त पाया गया है.
  3. धान की नर्सरी भीगी विधि से पौध तैयार करने का तरीका उत्तरी भारत में अधिक प्रचलित है. इसके लिए खेत में पानी भरकर 2 से 3 बार जुताई करते हैं ताकि मिट्टी लेहयुक्त हो जाए और खरपतवार नष्ट हो जाएं. आखिरी जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर लें.
  4. जब मिट्टी की सतह पर पानी न रहे तो खेत को 1.25 से 1.50 मीटर चौड़ी और सुविधाजनक लम्बी क्यारियों में बांट लें, ताकि बुवाई, निराई और सिंचाई की विभिन्न सस्य क्रियाएं आसानी से की जा सकें.
  5. क्यारियां बनाने के बाद पौधशाला में 5 सेंटीमीटर ऊंचाई तक पानी भर दें तथा अंकुरित बीजों को समान रूप से क्यारियों में बिखेर दें.
  6. पौधशाला के 1000 वर्गमीटर क्षेत्रफल में लगभग 700 से 800 किलोग्राम गोबर की गली सड़ी खाद, 8 से 12 किलोग्राम यूरिया, 15 से 20 किलोग्राम सिंगल सुपरफास्फेट, 5 से 6 किलोग्राम म्युरेटऑफ पोटाश और 2 से 2.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट खेत की तैयारी के समय अच्छी तरह से मिलाना चाहिए.
  7. जिन क्षेत्रों में लौहतत्व की कमी के कारण हरिमाहीनता के लक्षण दिखाई दें, उन क्षेत्रों में 2 से 3 बार एक सप्ताह के अन्तराल पर 0.5 प्रतिशत फेरससल्फेट के घोल का छिड़काव करने से हरिमाहीनता की समस्या को रोका जा सकता है.
  8. पौधशाला में 10 से 12 दिन बाद निराई अवश्य करें, यदि पौधशाला में अधिक खरपतवार होने की संभावना हो तो ब्युटाक्लोर 50 ईसी या बैन्थियो कार्बनामक शाकनाशियों की 120 मिलीलीटर मात्रा 60 लीटर पानी में घोलकर 1000 वर्गमीटर क्षेत्रफल में बुवाई के 4 से 5 दिन बाद  खरपतवार उगने से पहले छिड़क दें.
  9. पौधशाला में कीटों का प्रकोप होते ही थाइमेथोएट 30 ईसी, 2 मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़कना चाहिए.
  10. सामान्यतःजब पौध 21 से 25 दिन पुरानी हो जाए तथा उसमें 5 से 6 पत्तियां निकल जाएं तो यह रोपाई के लिए उपयुक्त होती है. पौध उखाड़ने के एक दिन पहले नर्सरी में अच्छी तरह से पानी भर देना चाहिए, जिससे पौध को आसानी से उखाड़ा जा सके और साथ ही साथ पौध की जड़ों को भी कम नुकसान हो.

पौध की रोपाई

  1. रोपाई के लिए पौध उखाड़ने से एक दिन पहले नर्सरी में पानी लगा दें तथा पौध उखाड़ते समय सावधानी रखें. पौधों की जड़ों को धोते समय नुकसान न होने दें और पौधों को काफी नीचे से पकड़ें , पौध की रोपाई पंक्तियों में करें.
  2. पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. एक स्थान पर 2 से 3 पौध ही लगाएं, इस प्रकार एक वर्ग मीटर में लगभग 50 पौधे होने चाहिए.

पोषक तत्व प्रबंधन

  1. अधिक उपज और भूमि की उर्वरता शक्ति बनाये रखने के लिए हरी खादया गोबर या कम्पोस्ट का प्रयोग करना चाहिए. हरी खाद हेतु सनईया ढेंचा का प्रयोग किया गया हो तो नाइट्रोजन की मात्रा कम की जा सकती है, क्योंकि सनई या ढेंचे से लगभग 50 से 60 किलो ग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है.
  2. उर्वरकों का प्रयोग भूमि परीक्षण के आधार पर करना चाहिए, धान की बौनी किस्मों के लिए 120 किलोग्राम नाइद्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए.
  3. बासमती किस्मों के लिए 100 से 120 किलोग्राम नाइद्रोजन, 50 से 60 किलोग्राम फॉस्फोरस, 40 से 50 किलोग्राम पोटाश और 20 से 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर देना चाहिए.
  4. संकर धान के लिए 130 से 140 किलोग्राम नाइद्रोजन, 60 से 70 किलोग्राम फॉस्फोरस, 50 से 0 किलोग्राम पोटाश और 25 से 30 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर देना चाहिए.
  5. यूरिया की पहली तिहाई मात्रा का प्रयोग रोपाई के 5 से 8 दिन बाद करें जब पौधे अच्छी तरह से जड़प कड़लें. दूसरी एक तिहाई यूरिया की मात्रा कल्ले फूटते समय (रोपाई के 25 से 30 दिन बाद) और शेष एक तिहाई हिस्सा फूल आने से पहले (रोपाई के 50 से 60 दिन बाद) खड़ी फसल में छिड़काव करके करें.
  6. फास्फोरस की पूरी मात्रा सिंगलसुपर फास्फेट या डाईअमोनियम फास्फेट (डीएपी) के द्वारा, पोटाश की भी पूरी मात्रा म्युरेट ऑफ पोटाश के माध्यम से एवं जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा धान की रोपाई करने से पहले अच्छी प्रकार मिट्टी में मिला देनी चाहिए.
  7. यदि किसी कारणवश पौध रोपते समय जिंक सल्फेट खाद न डाला गया हो तो इसका छिड़काव भी किया जा सकता है. इसके लिए 15 से 20 दिनों के अन्तराल पर 3 छिड़काव 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट + 0.25 प्रतिशत बुझे हुए चूने के घोल के साथ करने चाहिए. पहला छिड़काव रोपाई के एक महीने बाद करें.

जल प्रबंधन

  1. धान की फसल के लिए सिंचाई की पर्याप्त सुविधा होना बहुत ही जरूरी है. सिंचाई की पर्याप्त सुविधा होने पर लगभग 5 से 6 सेंटीमीटर पानी खेत में खड़ा रहना अति लाभकारी होता है.
  2. धान की चार अवस्थाओं- रोपाई, ब्यांत, बाली निकलते समय और दाने भरते समय खेत में सर्वाधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है. इन अवस्थाओं पर खेत में 5 से 6 सेंटीमीटर पानी अवश्य भरा रहना चाहिए.
  3. कटाई से 15 दिन पहले खेत से पानी निकालकर सिंचाई बंदकर देनी चाहिए.

खरपतवार रोकथाम

  1. धान के खरतपवार नष्ट करने के लिए खुरपी या पेडीवीडर का प्रयोग किया जा सकता है.
  2. रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग करना चाहिए, धान के खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए कुछ शाकनाशियों का उल्लेख निचे सरणी में किया गया है.
  3. खरपतवारनाशी रसायनों की आवश्यक मात्रा को 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से समान रूप से छिड़काव करना चाहिए.
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धान की कुछ मुख्य खरपतवारनाशी

खरपतवारनाशी रसायन सक्रिय पदार्थ प्रति हेक्टेयर मात्रा (किलो ग्राम/ yhVj)  

प्रयोग का समय कब

 

 

खरपतवारनाषी का बाजार मूल्य

 

ब्युटाक्लोर 50 1.5 रोपाई के 5-6 दिन 300 :0 प्रति ली0
प्रीटीलाक्लोर 50 0.5 बादरोपाई के 5-6 दिन 400 :0 प्रति ली0
विस्पाईरी सोडियम 10 0.25 बादरोपाई के 25-30 दिन बाद 3000 :0प्रति ली0

 

कीट रोकथाम

पौध फुदके  पौध फुदके भूरे, काले और सफेद रंग के छोटे-छोटे कीट होते हैं जिनके शिशु एवं वयस्क दोनों ही पौधों के तने और पर्णाच्छद से रस चूसकर फसल को हानि पहुंचाते हैं.

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रोकथाम

  1. फसल पर इस कीट की निगरानी बहुत जरूरी है, क्योंकि फुदके तने पर होते हैं और पत्तों पर नहीं दिखते.
  2. इनकी निगरानी के लिए प्रकाश-प्रपंच (लाइटट्रैप) का प्रयोग भी किया जा सकता है.
  3. अधिक प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल, 1 मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी या थायोमेथोक्ज़म 25 डब्ल्यूपी, 1 ग्राम प्रति 5 लीटर या बीपीएमसी 50 ईसी, 1 मिली लीटर प्रति लीटर या कार्बरिल 50 डब्ल्यूपी, 2 ग्रामप्रति लीटर या बुप्रोफेज़िन 25 एससी, 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें. छिड़काव करते समय नोज़ल पौधों के तनों पर रखें.
  4. दानेदार कीटनाशी जैसे कार्बोफ्युरान 3 जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या फिप्रोनिल 0.3 जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर भी इस्तेमाल कर सकते हैं. ¼इमिडाक्लोप्रिड dk cktkj ewY; 450 : izfr fdxzk0½

तना छेदक तना छेदक की केवल सुंडियां ही फसल को हानि पहुंचाती हैं और वयस्क पतंगे फूलों के शहद आदि पर निर्वाह करते हैं. बाली आने से पहले इनके हानि के लक्षणों को ‘डेड-हार्ट’एवं बाली आने के बाद‘ सफेद बाली’ के नाम से जाना जाता है.

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रोकथाम

  1. प्रकाश प्रपंच के उपयोग से तना छेदक की संख्या पर निगरानी रखें. निगरानी के लिए फेरोमोन प्रपंच 5 प्रति हेक्टेयर पीला तना छेदक के लिए लगाएं.
  2. रोपाई के 30 दिन बाद ट्राइकोग्रामा जैपोनिकम (ट्राइकोकार्ड) 1 से 1.5 लाख प्रति हेक्टेयर प्रति सप्ताह की दर से 2 से 6 सप्ताह तक छोड़ें.
  3. अधिक प्रकोप होने पर दानेदार कीटनाशी जैसे कार्बोफ्युरॉन 3 जीयाकार टैप हाइड्रोक्लोराइड 4 जीयाफिप्रोनिल 0.3 जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें या क्लोरोपायरीफॉस 20 ईसी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर या क्विनलफॉस 25 ईसी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर या कारटैपहाइड्रोक्लोराइड 50 एसपी 1 मिलीलीटर प्रति लीटर का छिड़काव करें. ¼Dyksjksi;jhQkWl dk cktkj ewY; 280 : izfr yhVj½

 

 

 

पत्ता लपेटक इसकी टकी भी केवल सुंडियां ही फसल को हानि  पहुंचाती हैं. जबकि वयस्क पतंगे फूलों के शहद पर जिंदा रहते हैं. सूंडी पत्तों के दोनों कि नारों को सिलकर इनके हरे पदार्थ को खा जाती है. अधिक प्रकोप की अवस्था में फसल झुलसी नजर आती है.dhan

रोकथाम

  1. प्रकाश-प्रपंच के प्रयोग से कीट की निगरानी करें.
  2. ट्राइको ग्रामा का इलोनिस (ट्राइकोकार्ड) 1 से 1.5 लाखप्रति हेक्टेयर प्रति सप्ताह की दर से 30 दिन रोपाई उपरांत 3 से 4 सप्ताह तक छोड़ें.
  3. अधिक प्रकोप होने पर क्विनलफॉस 25 ईसी, 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या क्लोरोपायरीफॉस 20 ईसी, 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर या कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 50 एसपी, 1 मिलीलीटर प्रति लीटर या फ्लूबैंडिमाइड 39.35 एससी 1 मिली लीटर प्रति 5 लीटर पानी का छिड़काव करें या दानेदार कीटनाशी कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग भी कर सकते हैं.

 

गंधीबग यह कीट खेत में दुर्गन्ध फैलाता है, अतः इसे गंधीबग  कहा जाता है. इसके शिशु ववयस्क दोनों ही दूधिया अवस्था में दानों से रस चूसकर इन्हें खाली कर देते हैं. ऐसे दानों पर काला निशान भी बन जाता है.

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रोकथाम प्रकोप दिखाई देने पर क्विनलफॉस 25 ईसी 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें या कार्बारिल या मिथाइल पैराथियानधूल 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बुरकाव करें.

रोग रोकथाम

ब्लास्ट, बदरा या झोंका रोग- यह रोग फफूंद से फैलता है. पौधों के सभी भाग इस बीमारी द्वारा प्रभावित होते हैं. वृद्धि अवस्था में यह रोग पत्तियों पर भूरे धब्बे के रूप में दिखाई देता है. इनके धब्बों के किनारे कत्थई रंग के और बीच वाला भाग राख के रंग का होता है. रोग के तेजी से आक्रमण होने पर बाली का आधार भी ग्रसित हो जाता है, जिससे इस अवस्था को ग्रीवा गलन कहते हैं. जिसमें बाली आधार से मुड़कर लटक जाती हैं. परिणाम स्वरूप दाने का भराव भी पूरा नहीं हो पाता है.

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रोकथाम

  1. ट्राइसायक्लेजोल 2 ग्राम प्रति किलो ग्राम से उपचारित बीज बोएं.
  2. जुलाई के प्रथम पखवाड़े में रोपाई पूरी कर लें, देर से रोपाई करने पर झोंका रोग के लगने की संभावना बढ़ जाती है.
  3. यदि पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगें तो कार्बेन्डाजिम 1000 या ट्राइसायक्लेजोल 500 ग्राम का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करें.

पत्ती का जीवाणु झुलसा रोग यह बीमारी जीवाणु के द्वारा होती है, पौधों की छोटी अवस्था से लेकर परिपक्व अवस्था तक यह बीमारी कभी भी हो सकती है. इस रोग में पत्तियों के किनारे ऊपरी भाग से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगते हैं. संक्रमण की उग्र अवस्था में पूरी पत्ती सूख जाती है, इसलिए बालियां दानों रहित रह जाती है.

रोकथाम

  1. उपचारित बीज का प्रयोग करें, इसके लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 2.5 ग्राम + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के घोल में बीज को 12 घंटे तक डुबोएं.
  2. इस बीमारी के लगने की अवस्था में नाइट्रोजन का प्रयोग रोकथाम तक बंद कर दें.
  3. जिस खेत में बीमारी लगी हो उसका पानी दूसरे खेत में न जाने दें, इससे रोग के फैलने की आशंका होती है, साथ ही प्रकोप वाले खेत को भी पानी न दें.
  4. खेत में रोग को फैलने से रोकने के लिए खेत से समुचित जल निकास की व्यवस्था की जाए, तो बीमारी को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है.
  5. बीमारी के नियंत्रण के लिए 74 ग्राम एग्रीमाइसीन-100 एवं 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से तीन से चार बार छिड़काव करें. पहला छिड़काव रोग प्रकट होने पर और बाद में आवश्यकतानुसार 10 दिन के अन्तराल पर करें.

शीथब्लाइट यह बीमारी फफूंद के द्वारा होती है. इसके प्रकोप से पत्ती के शीथ पर 2 से 3 सेंटीमीटर लम्बे हरे से भूरे रंग के धब्बे बनते हैं जोकि बाद में चलकर भूसे के रंग के हो जाते हैं. धब्बों के चारों तरफ बैंगनी रंग की पतली धारी बन जाती है.

रोकथाम- कार्बेन्डाजिम 500 ग्राम या शीथमार- 3, 1.5 लीटर या हेक्साकोनाजोल 1000 मिली लीटर दवा 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. dhan

खैरा रोग यह बीमारी जस्ते की कमी के कारण होती है. इसके लगने पर निचली पत्तियां पीली पड़नी शुरू हो जाती हैं एवं बाद में पत्तियों पर कत्थई रंग के छिटकवां धब्बे उभरने लगते हैं. रोग की तीव्र अवस्था में रोग ग्रसित पत्तियां सूखने लगती हैं. कल्ले कम निकलते हैं तथा पौधों की वृद्धि रुक जाती है.

रोकथाम

  1. यह बीमारी न लगे इसके लिए 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई से पहले खेत की तैयारी के समय डालना चाहिए.
  2. बीमारी लगने के बाद इसकी रोकथाम के लिए 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 2.5 किलो ग्राम चूना 600 से 700 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करें. अगर रोकथाम न हो तो 10 दिन बाद पुनः छिड़काव करें.

कटाई एवं मड़ाई

बालियां निकलने के लगभग एक माह बाद सभी किस्में पक जाती हैं. कटाई के लिए जब 80 प्रतिशत बालियों में 80 प्रतिशत दाने पक जाएं तथा उनमें नमी 20 प्रतिशत हो, वह समय उपयुक्त होता है. कटाई दरांती से जमीन की सतह से करनी चाहिए. मड़ाई साधारणत या हाथ से पीटकर की जाती है.

शक्ति चालित श्रेसर का उपयोग भी बड़े किसान मड़ाई के लिए करते हैं. कम्बाईन के द्वारा कटाई और मड़ाई का कार्य एक साथ हो जाता है. मड़ाई के बाद दानों की सफाई कर लेते हैं. सफाई के बाद धान के दानों को अच्छी तरह सुखा कर ही भण्डारण करना चाहिए. भण्डारण से पूर्व दानों को 10 प्रतिशत नमी तक सुखा लेते हैं.

पैदावार

समस्त उपर्युक्त सस्य क्रियाओं एवं उचित किस्म अपनाने पर शीघ्र पकने वाली किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसत उपज 40 से 50 क्विंटल, मध्यम व देर से पकने वाली किस्मों से प्रति हेक्टेयर उपज 50 से 60 क्विंटल एवं संकर धान से प्रति हेक्टेयर औसत उपज 60 से 70 क्विंटल प्राप्त होती है.

 

विपणन – स्थानीय मण्डी/सरकारी क्रय केन्द्र पर धान का विपणन किया जा सकता है। अधिक लाभ प्राप्त करने हेतु धान से चावल निकाल कर विपणन करना चाहिए।

धान लागत प्रति हे0 (रूपये में)
जुताई 4 जुताई 2.50 घन्टा प्रति हे0 प्रति जुताई / 450 प्रति घन्टा 4500
पडलिंग टैªक्टर द्वारा 3000
योग 7500
बीज (संकर धान) 15 किग्रा0 /288 रू0 प्रति किग्रा0 4320
बीज (सामान्य धान) 30 किग्रा0 / 33 रू0 प्रति किग्रा0 990
बीज (महीन धान) 25 किग्रा0 / 34 रू0 प्रति किग्रा0 850
कम्पोस्ट खाद 10 मै0टन / 400 रू0 प्रति मै0टन 4000
रोपाई 55 श्रमिक प्रति हे0 / 300 रू0 प्रति श्रमिक 16500
सिंचाई 4 सिंचाई, 15 घन्टे प्रति हे0 / 100 रू0 प्रति घन्टा 6000
योग 30820
उर्वरक डी0ए0पी0 165 किग्रा0 / 23.00 रू0 प्रति किग्रा 3795
यूरिया 264 किग्रा0 / 5.92 रू0 प्रति किग्रा 1565
पोटाष 100 किग्रा0 / 19 रू0 प्रति किग्रा 1900
जिंक 25 किग्रा0 / 85 रू0 प्रति किग्रा 2125
योग 9385
कृशि रक्षा रसायन
र्कोन्डाजिम 100 ग्राम / 386 रू0 प्रति किग्रा0 40
ट्राइकोडर्मा 2.5 किग्रा0 / 100 रू0 प्रति किग्रा0 250
सूडोमौनास 2.5 किग्रा0 / 100 रू0 प्रति किग्रा0 250
ब्यूटाक्लोर 2.5 लीटर / 300 रू0 प्रति लीटर 750
हैक्साकोनाजोल 0.5 लीटर / 210 रू0 प्रति लीटर (दो वार) 210
मैन्कोजेव 2 किग्रा0 / 300 रू0 प्रति किग्रा0 600
योग 2140
कटाई मढ़ाई 50 श्रमिक / 300 रू0 प्रति श्रमिक 15000
अन्य व्यय – 5000
योग 20000
महायोग 69845

उत्पादन – 65 कु0 प्रति हे0
बिक्री मूल्य – 1815 रूपये प्रति कु0
उपज से प्राप्त कुल धनराषि . 65ग1815 त्र 117975 रूपये
षुद्ध लाभ – 117975-69845 त्र 48130 रूपये
लाभ-लागत अनुपात त्र 1रू/69

गेहूँ की खेती

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परिचयः- गेहूँ  रबी मौसम की एक प्रमुख फसल है। रामपुर में गेहूँ  का उत्पादन कुल 1.48 लाख है0 क्षेत्रफल किया जाता है। गेहूँ  का कुल उत्पादन 639706 मै0 टन है तथा औसत उत्पादकता 42.98 प्रति है0 है। गेहूँ  की फसल सम्पूर्ण जनपद में की जाती है।

जलवायुः-

गेहूँ  की फसल के लिये उचित तापमान 140-350 उचित रहता है। फसल पकते समय लम्बे दिनों की आवश्यक ता होती है।

भूमिः-

गेहूँ  के लिये दोमट मिट्टी से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी उचित रहती है। उचित जल निकास गेहूँ  की अच्छी पैदावार के लिये आवश्यक  है। जल-भराव वाली भूमि गेहूँ  की खेती के लिये उचित नहीं होती है। मृदा का पी0एच0 मान 6-7.5 सर्वोत्तम रहता है।

प्रजातियां –

1-समय से बोई जाने वाली प्रजातियां –                                     (15 नबम्वर से 15 दिसम्बर तक)

क्र0स0 प्रजातियां पकने की अवधि क्र0स0 प्रजातियां पकने की अवधि
1 एच0डी0-2967 125-135 45-50 35 35
2 एच0डी0-3086 140-145 50-55 35 35
3 पी0बी0 डब्ल्यू-343 130-135 50-52 35 35
4 पी0बी0 डब्ल्यू-373 120-125 45-50 35 35
5 डब्ल्यू एच0-1105 135-140 55-60 35 35

 

2- विलम्ब से बाई जाने वाली प्रजातियां:-                                (15 दिसम्बर से 15 जनवरी तक)

क्र0स0 प्रजातियां पकने की अवधि क्र0स0 प्रजातियां पकने की अवधि
1 एच0डी0-3059 110-120 40-45 35 35
2 डी0बी0डब्ल्यू-16 120-125 40-45 35 35
3 राज-4238 115-120 45-50 35 35
4 डब्ल्यू-एच0- 1124 105-115 40-45 35 35
5 डी0बी0डब्ल्यू -107 110-120 45-50 35 35

 

बीज दरः- समय से बुबाई के लिये 100 कि0ग्रा0/है0

विलम्ब से बुबाई के लिये 125 कि0ग्रा0/है0

ऊसर भूमि के लिये 125 कि0ग्रा0/है0

उर्वरक प्रबन्धनः-

गेहूँ  की फसल के लिये नत्रजन 120 कि0ग्रा0/है0, फॉस्फोरस 60 कि0ग्रा0/है0 तथा पोटाश  40 कि0ग्रा0/है0 की आवश्यक ता होती है। नत्रजन की 1/2 मात्रा तथा फॉस्फोरस व पोटाश  की पूर्ण मात्रा खेत की तैयारी के समय ही प्रयोग की जाती है। नत्रजन की शेष  मात्रा 2 बराबर भागों में बॉटकर दो बार में दी जाती है। प्रथमवार पहली सिंचाई के समय तथा द्वितीयवार बाली निकलने से पूर्व देते है।

 

 

 

 

 

 

सिंचाई प्रबन्धनः-

गेहूँ  की फसल के लिये 06 सिचाईयों की आवश्यक ता होती है।

पहली सिंचाईः- क्राउन रूट- बुवाई के 20-25 दिन बाद (ताजमूल आवश्यक ता)

दूसरी सिंचाईः- बुवाई के 40-45 दिन पर (कल्ले निकलते समय)

तीसरी सिंचाईः- बुवाई के 60-65 दिन पर (दीर्घ सन्धि अथवा गाठे बनते समय)

चैथी सिंचाईः- बुवाई के 80-85 दिन पर (पुश्पावस्था)

पांचवी  सिचाईः- बुवाई के 100-105 दिन पर (दुग्धावस्था)

छठी सिंचाईः- बवाई के 115-120 दिन पर (दाना भरते समय)

खरपतवार प्रबन्धनः-

गेहूँ का मामा, जंगली जेई, बथुआ, कृश्णनील, दूप, हिरनखुरी,मौथा, सत्यानाशी , जंगली गाजर आदि प्रमुख खरपतवार है।

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क्र0स0 खरपतवारनाशी सक्रिय तत्व (प्रतिशत  में) मात्रा (कि0ग्रा0/ली0/ क्र0स0 खरपतवारनाशी
1 सल्फोसल्फ्यूरॉन 75% डब्ल्यू0पी0 33.75 ग्रा0 बुवाई के 20-25 दिन बाद 750
2 मैट्रीब्यूजिन 75% डब्ल्यू0पी0 250 ग्रा0 बुवाई के 20-25 दिन बाद 500

 

रोग प्रबन्धनः-

(1) झुलसा रोगः- कुछ पीले व कुछ भूरापन लिये हुये अण्डाकार धब्बे शुरु  में निचली पत्तियों पर दिखाई देते हैं। ये धब्बे बाद में किनारों पर कत्थई भूरे रंग के तथा बीच में हल्के भूरे रंग के हो जाते है।

 

उपचारः-

1- मैंकोजेब 2 किग्रा0/है0 800-1000 ली0 पानी मे घोलकर। मैंकोजेब का बाजार मूल्य 300/कि0ग्रा0 है।

2- जिनेब 75 प्रतिशत  घुलनशील  चूर्ण 2.5 किग्रा0। जिनेब का बाजार मूल्य 300/कि0ग्रा0 है।

3- थीरम 80 प्रतिशत  घुलनशील  चूर्ण 2.0 किग्रा0 अथवा जीरम 27 प्रतिशत  3.5 लीटर दूसरे छिड़काव के घोल में 20 किग्रा0 यूरिया/है0 मिलाये। थीरम का बाजार मूल्य 350/कि0ग्रा0 है।

4- प्रोपीकोनेजोल (25 प्रतिशत  ई0सी0) को आधा लीटर रसायन को 1000 लीटर पानी से छिड़काव करें। प्रोपीकोनेजोल का बाजार मूल्य 850/ली0 है।

 

(2) गेरूई या रतुआ रोग की पहचानः-

गेरूई भूरे पीले अथवा काले रंग की होती है। क्षेत्र में फसल प्रायः भूरे रतुआ से ही प्रभावित रहती है। फफूदी के फफोले पत्तियों पर पड़ जाते है जो बाद में बिखर कर अन्य पत्तियों को ग्रसित कर देते है। काली गेरूई तना तथा पत्ती दोनो पर लगती है।

उपचारः-

गेहूँ  की फसल में गेरूई रोगों के नियंत्रण के लिये मुख्यतः आर्थिक कारणों से कवकनाशी  के छिड़काव की आम संस्तुति नहीं की जाती है। केवल उन परिस्थितियों में जिनमें गेहूँ  की पैदावार कम से कम 25-30 कुन्तल प्रति है0 होने व गेरूई का प्रकोप होने की प्रबल सम्भावना में मैकोजेब 2.0 किग्रा0 या जिनेब 2.5 किग्रा0 प्रति है0 का छिड़काव किया जा सकता है। पहला छिड़काव रोग दिखाई देते ही तथा दूसरा छिड़काव 10 दिन के अन्तर पर करना चाहिए। एक साथ झुलसा, रतुआ तथा करनाल बंट तीनों रोगों की आषंका होने पर प्रोपीकोनेजोल (25% ई0सी0) आधा लीटर रसायन को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

 

चूहेः-

गेहूँ  की खड़ी फसल को चूहे बहुत अधिक क्षति पहचाते है, अतः फसल की अवधि में दो-तीन बार इनकी रोकथाम की आवश्यक ता है। यदि चूहों की रोकथाम का कार्य सामूहिक रूप से किया जाये तो अधिक सफलता मिलती है।

उपचारः-

1- जिंक फास्फाइड 80 प्रतिशत  की 1.0 ग्राम मात्रा को 1.0 ग्राम सरसों का तेल एवं 48 ग्राम भूने हुये दाने में बनाये गये जहरीले चारे का प्रयोग करना चाहिये। जिंक फास्फाइड का बाजार मूल्य 10 रूपये प्रति पैकेट है।

करनाल बन्टः-

भारत में प्रथमवार यह रोग करनाल (हरियाणा) में 1930 में गेहूँ  की फसल पर पाया गया। यह एक फफूदीजनक रोग है। जिसका रोगाणु निवोसिया इण्डिका है। रोग के प्रकोप से दानों में काला चूर्ण बन जाता है। जिसके कारण भारी नुकसान होता है।

उपचारः-

1- प्रोपीकोनेजोल (25 प्रतिशत  ई0सी0) को आधा लीटर रसायन को 1000 लीटर पानी से 2-3 बार छिड़काव करें।

कीट प्रबन्धनः-

दीमकः- दीमक एक सामाजिक कीट है, जो जमीन की गहराई में पायी जाती है। बिना सड़ी गोबर की खाद डालने से इसका प्रकोप बड़ जाता है।

उपचारः-

क्लोरोपाइरीफॉस 20% ई0सी0 2.50 ली0/है0 की दर से प्रयोग करने पर दीमक का नियन्त्रण सफलतापूर्वक किया जा सकता है। ईमीडाक्लोपरिड 17.8: ई0सी0 2.50 मि0ली0/है0 की दर से प्रयोग करने पर दीमक का नियन्त्रण किया जा सकता है।  क्लोरोपाइरीफॉस का बाजार मूल्य 300 रू0/ली0 तथा ईमीडाक्लापरिड का 1000 रू0/ली0 है।

 

 

 

कटाई व मढ़ाईः- जब दानों में 25-30 प्रतिशत  नमी रह जाने पर फसल की कटाई कर लेने चाहिये। फसल काटने के बाद ट्रैक्टर चालित थ्रैसर से मढाई करते है। भण्डारण के लिये दानों में 12-14 प्रतिशत  नमी होनी चाहिये।

विपणनः-

स्थानीय मण्डी तथा सरकारी क्रय केन्द्रों पर।

 

 

गेहूँ  लागत प्रति हे0 (रूपये में)
जुताई तीन जुताई 2.50 घन्टा प्रति हे0 प्रति जुताई / 450 प्रति घन्टा 3375
पाटा लागाना 1200
योग 4575
बीज 100 किग्रा0 / 35.35 रू0 प्रति किग्रा0 3535
जैविक खाद 10 टन गोवर की खाद प्रति हे0 / 400 रू0 प्रति टन 4000
सिंचाई 6 सिंचाई, 15 घन्टे प्रति हे0 / 100 प्रति घन्टा 9000
निराई गुडाई 15 श्रमिक  प्रति हे0 / 300 रू0 प्रति श्रमिक 4500
योग 21035
उर्वरक डी0ए0पी0 132 किग्रा0 / 23.00 रू0 प्रति किग्रा 3036
एम0ओ0पी0 100 किग्रा0 / 19 रू0 प्रति किग्रा 1900
यूरिया 210 किग्रा / 5.92 रूपये प्रति किग्रा0 1245
जिंक 25 किग्रा / 85 रूपये प्रति किग्रा 2125
योग 8306
कृषि रक्षा रसायन
बीज शोधन कार्बेन्डाजिम 200 ग्राम / 386 रू0 प्रति किग्रा 77
ब्यूवेरिया-बेसियाना 2.5 किग्रा / 100 रूपये प्रति किग्रा 250
रतुआ (मैन्कोजेव) 2 किग्रा / 253 रू0 प्रति किग्रा 506
खरपतवारनाशी  रसायन 2000
भूमि षौधन ट्राइकोडर्मा 2.5 किग्रा / 100 रूपये प्रति किग्रा 250
माहू क्यूनालाफॉस 1 ली0 प्रति हे0 /  419 रू0 प्रति ली0 419
योग 3502
कटाई मढ़ाई आदि 50 श्रमिक / 300 रू0 प्रति श्रमिक 15000
अन्य व्यय 3000
योग 18000
महायोग 55418

उत्पादन –  1. गेहूँ  45 कु0 प्रति हे0

           2 भूसा 50 कु0 प्रति हे0

न्यूनतम बिक्री मूल्य –      1. गेहूँ  1925 रूपये प्रति कु0

  1.    भूसा 500 रूपये प्रति कु0

उपज से प्राप्त कुल धनराषि     1. गेहूँ  – 45×1925 = 86625 रूपये

  1.    भूसा 50 x 500     = 25000 रूपये

_____________________________________________

111625 रूपये

_____________________________________________

शुद्ध लाभ 11162555418 = 56207 रुपये

लाभ-लागत अनुपात= 1:1.01

 

आटा/दलिया के रूप विपणन करने पर – आटा/दलिया तैयार करने मे लागत 400कु0/

आटा/दलिया की विक्री से प्राप्त मूल्य- 2800/कु0

आटा/दलिया से कुल प्राप्त धनराषि =45X2800=126000

षुद्ध लाभ प्रति कुन्तल =400 रू0

कुल लाभ =400X45= 18000 रू0

सकल लाभ =56207+18000=74207 रू0

उड़द की खेती

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उड़द की खेती भारत की एक प्रमुख दलहनी फसल है| उड़द की खेती खरीफ और जायद के रूप में की जा सकती है| यह आहार के रूप में अत्यंत पौष्टिक होती है जिसमे प्रोटीन 24 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 60 प्रतिशत और कैल्सियमव फास्फोरस का अच्छा स्रोत है| उड़द की खेती से भूमि को भी संरक्ष्ण और उर्वरक व अन्य पोषक तत्वों की पूर्ति भी होती है| उड़द की फसल को किसान भाई मिटटी के लिए हरी खाद के रूप में भी प्रयोग कर सकते है| रामपुर में उर्द की खेती लगभग 3050 हे0 मे की जाती है, तथा कुल उत्पादन 2600 मै0टन तथा उत्पादक 8.50 कु0 प्रति हे0 है।

जलवायु

उड़द उच्च तापक्रम सहन करने वाली उष्ण जलवायु की फसल है| इसी कारण जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा होती है वहाँ अनेक भागों में उगाया जाता है| इसकी अच्छी वृद्धि और विकास के लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान आवश्यक है परन्तु यह 42 डिग्री सेल्सियस तापमान तक सहन कर लेती है| अधिक जलभराव वाले स्थानों में इसे नहीं उगाना चाहिए

भूमि

उड़द की खेती बलुई मिटटी से लेकर गहरी काली मिट्टी जिसका पी0एच0 मान 6.5 से 7.8 तक में सफलतापूर्वक की जा सकती है| उड़द का अच्छा उत्पादन लेने के लिए खेत का समतल होना और खेत से जल निकास की उचित व्यवस्था का होना अति आवश्यक है|

फसल चक्र

उड़द कम अवधि व कम बढ़वार वाली फसल होने के कारण इसे ऊंची बढ़वार  वाली फसलों के साथ उगाया जा सकता है| इसी कारण इसका अन्तः फसल प्रणाली में अच्छा स्थान माना जाता है| कुछ फसलें जिनके साथ उड़द को उगाया जा सकता है, जैसे-

अरहर + उड़द

बाजरा + उड़द

सूरजमुखी + उड़द

मक्का + उड़द

गन्ना + उड़द

बसंतकालीन गन्ने के साथ अन्तरवर्तीय खेती करना लाभदायक रहता है| 90 सेंटीमीटर की दूरी पर बोई गयी गन्ने की दो पंक्तियों के बीच की दूरी में उड़द की दो पंक्ति ली जा सकती है| ऐसा करने परउड़द के लिए अतिरिक्त उर्वरक की आवश्यकता नहीं पड़ती है| सूरजमुखी एवं उर्द की अन्तरवर्तीय खेती के लिए सूरजमुखी की दो पंक्तियों के बीच उर्द की दो से तीन पंक्तियां लेना उत्तम रहता है|

उन्नत किस्में

क्र0स0 किस्म का नाम फसल पकने की अवधि (दिन) उत्पादन क्षमता (कु0/है0) बीज का बाजार मूल्य (रू0/किग्रा0)
1 टाइप-9 85-90 10-12 85
2 पन्त उर्द-19 80-85 10-12 85
3 आजाद-1 80-90 10-12 85
4 नरेन्द्र उर्द-1 70-80 12-15 85
5 नरेन्द्र उर्द-2 80-85 13-15 85
6 पन्त उर्द-31 70-75 12-19 85
7 आजाद-3 80-85 12-14 85

 

खेत की तैयारी

खेत की अच्छी तैयारी परिणाम स्वरूप अच्छा अंकुरण व फसल में एक समानता के लिए बहुत जरूरी है| भारी मिट्टी की तैयारी में अधिक जुताई की आवश्यकता होती है| सामान्यतः 2 से 3 जुताई करके खेत में पाटा चलाकर समतल बना लिया जाता है तो खेत बुवाई के योग्य बन जाता है| ध्यान रहे कि जल निकास नाली की व्यवस्था अवश्य हो|

 

बुवाई का समय तरीका

 

मानसून के आगमन पर या जून के अंतिम सप्ताह में पर्याप्त वर्षा होने पर बुवाई करे| इसके लिए कतारों की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 10 सेंटीमीटर रखे एवं बीज 4 से 6 सेंटीमीटर की गहराई पर बोये| ग्रीष्म कालीन में फरवरी के तीसरे सप्ताह से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक बुवाई करे|

बीज की मात्रा

खरीफ में उड़द का बीज 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और ग्रीष्म कालीन बीज दर 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोना चाहिये|

बीज शोधन

मिटटी और बीज जनित रोगों से बचाव के लिए 2 ग्राम थायरम और 1 गाम कार्बेन्डाजिम मिश्रण 2:1 प्रतिकिलो ग्राम बीज या कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित कर लें| इसके बाद बीज को इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लूएस से 7 ग्रामप्रति किलो ग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें| बीज शोधन कल्चर से उपचारित करने के 2 से 3 दिन पूर्व करना चाहिए|

जैविक बीजोपचार

राइजोबियम कल्चर का एक पैकेट 250 ग्रामप्रति 10 किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त होता है| 50 ग्राम गुड़ या शक्करको 1/2 लीटर जल में घोलकर उबालें व ठण्डा कर लें| ठण्डा हो जाने पर ही इस घोल में एक पैकेट राइजोबियम कल्चर मिला लें| बाल्टी में 10 किलोग्राम बीज डालकर अच्छी तरह से मिला लें ताकि कल्चर के लेपस भी बीजों पर चिपक जाएं उपचारित बीजों को 8 से 10 घंटे तक छाया में फेला देते हैं| उपचारित बीज को धूप में नहीं सुखाना चाहिए| बीज उपचार दोपहर में करें ताकि शाम को या दूसरे दिन बुआई की जा सके| कवकनाशी या कीटनाशी आदि का प्रयोग करने पर राइजोबियमकल्चर की दुगनी मात्रा का प्रयोग करना चाहिए और बीजोपचार कवकनाशी-कीटनाशी तथा राइजोबियम कल्चर के क्रम में ही करना चाहिए|

उर्वरक की मात्रा

एकल फसल के लिए 15 से 20 किलोग्राम नत्रजन, 40 से 50 किलोग्राम फास्फोरस, 30 से 40 किलोग्राम पोटाश, प्रति हेक्टेयर की दर से अन्तिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए| उर्वरकों की मात्रा मिटटी परीक्षण के आधार पर देना चाहिए| नाइट्रोजन और फासफोरस की पूर्ति के लिए 100 किलोग्राम डीएपी प्रति हेक्टेयर का प्रयोग कर सकते है| उर्वरकों को अन्तिम जुताई के समय ही बीज से  5 से 7 सेंटीमीटर की गहराई तथा 3 से 4 सेंटीमीटर साइड पर ही प्रयोग करना चाहिए|

सूक्ष्म पोषक तत्व

गंधक (सल्फर)- काली और दोमट मिटटी में 20 किलोग्राम गंधक (154 किलोग्राम जिप्सम/ फॉस्फोजिप्सम या 22 किलोग्राम बेन्टोनाइट सल्फर) प्रति हैक्टर की दर से बुवाई के समय प्रत्येक फसल के लिये देना पर्याप्त होगा| कमी ज्ञात होने पर लाल बलुई मिटटी हेतु 40 किलोग्राम गंधक (300 किलोग्राम जिप्सम/फॉस्फो-जिप्सम या 44 किलोग्राम बेन्टोनाइट सल्फर) प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए| अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन से सल्फर के प्रयोग से 11 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त हुई है|

जिंक जिंक की मात्रा का निर्धारण मिटटी के प्रकार और उसकी उपल्बधता पर के अनुसार की जानी चाहिए|

दोमट मिटटी 2.5 किलोग्राम जिंक (12.5 किलोग्राम जिंकसल्फेट हेप्टाहाइड्रेट या 7.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट) प्रतिहैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए|

अधिक कार्बनिक पदार्थ वाली तराई क्षेत्रों की मिटटी बुवाई के पूर्व 3 किलोग्राम जिंक (15 किलोग्राम जिंक सल्फेट हेप्टाहाइड्रेट या 9 किलोग्राम जिंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट) प्रति हैक्टर की दर से तीन वर्ष के अन्तराल पर देना चाहिए|

मैंगनीज मैंगनीज की कमी वाली बलुई दोमट मिटटी में दो मैंगनीज सल्फेट के घोल का बीज उपचार या मैंगनीज सल्फेट के एक घोल का पर्णीय छिड़काव लाभदायक पाया गया है|

मॉलिब्डेनम मॉलिब्डेनम की कमी वाली मिटटी में 0.5 किलोग्राम सोडियम मॉलिब्डेट प्रति हेक्टर की दर से आधार उर्वरक के रूप में या 0.1 प्रतिशत सौडियम मॉलिब्डेट के घोल का दोबार पणीय छिड़काव करना चाहिए या मॉलिब्डेनम के घोल में बीज शोषित करें|

सिंचाई प्रबन्धन

आमतौर पर खरीफ की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है| यदि वर्षा का अभाव हो तो एक सिंचाई फलियाँ बनते समय अवश्य कर देनी चाहिए| उड़द की फसल को जायद में  3 से 4 सिंचाई की आवश्यकता होती है| प्रथम सिंचाई पलेवा के रूप में और अन्य सिंचाई 15 से 20 दिन के अन्तराल में फसल की आवश्यकतानुसार करना चाहिए| पुष्पावस्था तथा दाने बनते समय खेत में उचित नमी होना अतिआवश्यक है|

खरपतवार नियंत्रण

बुआई के 25 से 30 दिन बाद तक खरपतवार फसल को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैं| यदि खेत में खरपतवार अधिक हैं, तो 20 से 25 दिन बाद एक निराई कर देना चाहिए| जिन खेतों में खरपतवार गम्भीर समस्या हों वहां पर बुआई से एक दो दिन पश्चात पेन्डीमिथालीन की 0.75 से 1.00 किलोग्राम सक्रिय मात्रा को 400 से 600 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करना लाभप्रद रहता है | पेंडिमेथालिन 30 ईसी 340 प्रति लीटर।

कीट रोकथाम 

पिस्सूभृग (गैलेरूसिडभृग)- यह कीट सुबह के समय नये पौधों की पत्तियों पर छेद बनाते हुए उन्हें खाता है और दिन में मिटटी की दरारों में छिप जाता है| वर्षा ऋतु में इसकी टकागुबरैलाजड की गाँठों में सुराग कर जड़ों में घुस जाता है एवं इनको पूरी तरह खोखला कर देता है| इस कीट के द्वारा जड की गाँठों के नष्ट होने पर उड़द के उत्पादन में 60 प्रतिशत तक हानि देखी गई है| यह मूंग मोजेक विषाणु रोग का भी वाहक है|

रोकथाम मोनोक्रोटोफॉस 10 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज या डाईसल्फोटॉन 5 जी, 40 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीजो को उपचारित करे| फोरेट 10 जीकी 10 किलोग्राम या डाईसल्फोटॉन 5 जी 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए| मोनोक्रोटोफॉस का बाजार मूल्य 300 प्रति लीटर।

पत्ती मोड़क कीट- इल्लियां पत्तियों को ऊपरी सिरे से मध्य भाग की ओर मोड़ती है| यही इल्लियां कई पत्तियों को चिपकाकर जाला भी बनाती है| इल्लियां इन्हीं मुड़े भागों के अन्दर रहकर पत्तियों के हरे पदार्थ क्लोरोफिल को खा जाती हैं| जिससे पत्तियां पीली सफेद पड़ने लगती है|

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रोकथाम क्विनालफॉस दवा की 30 मिलीलीटर मात्रा 15 लीटर पानी की दर से छिडकाव करें, आवश्यकता होने पर दूसरा छिड़काव पहले छिड़काव से 15 दिन बाद करें| क्यूनालफॉस का बाजार मूल्य 280 प्रति लीटर।

एफिड- निम्फ और व्यस्क कीट बडी संख्या में पौधो की पत्तियों, तनों, कली एवं फूल पर लिपटे रहते है और फूलों का रस चूसकर पौधों को हानि पहुँचाते

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हैं|

नियंत्रण फसल को डायमिथिएट 30 ईसी, 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ घोलकर छिड़काव करें| डायमिथिएट का बाजार मूल्य 520 प्रति लीटर।

 

सफेद मक्खी दोनो ही पत्तियों की निचली सतह पर रहकर रस चूसते रहते हैं| जिससे पौधे कमजोर होकर सूखने लगते हैं| यह कीट अपनी लार से विषाणु पौधों पर पहुंचाता है और यलो मौजेक नामक बीमारी फैलाने का कार्य करते हैं|

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नियंत्रण पीले रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें| फसल में डायमिथिएट 30 ईसी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ घोलकर छिड़काव करें| डायमिथिएट का बाजार मूल्य 520 प्रति लीटर।

रोग और रोकथाम 

पीला चित्तेरी रोग

  1. पीला चित्तेरी रोग में सफेद मक्खी के रोकथाम हेतु आक्सीडेमाटान मेथाइल 0.1 प्रतिशत या डाइमिथिएट 0.2 प्रतिशत प्रति हेक्टयर 2 मिली लीटर प्रतिलीटर पानी और सल्फेक्स 3 ग्रामप्रति लीटर का छिड़काव 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर 3 से 4 छिड़काव 15 दिन के अंतर पर करके रोग का प्रकोप कम किया जा सकता है| डायमिथिएट का बाजार मूल्य 520 प्रति लीटर।

2. रोगरोधी किस्में जैसे- पंतउर्द- 19, पंतउर्द- 30

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पीडीएम- 1 (वसंतऋतु), यूजी- 218, पीएस- 1, आईपीयू- 94-1 (उत्तरा )नरेन्द्रउर्द- 1, उजाला, प्रताप उर्द- 1, शेखर- 3 (केयू- 309) इत्यादि उगाएं|

झुर्सदार पत्ती रोग, मौजेक मोटल, पर्ण कुंचन

  1. रोकथाम हेतु इमिडाक्लारोप्रिड 70 डब्लूएस 5 ग्रामप्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार करें| इमिडाक्लोरोप्रिड का बाजार मूल्य 450 प्रति लीटर।
  2. डाईमिथिएट 30 ईसी, 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिडकाव रोग वाहक की रोकथाम के लिये करना चाहिए| डायमिथिएट का बाजार मूल्य 520 प्रति लीटर।

चूर्णी कवक    

  1. फसल पर घुलनशीलगंधक 80 डब्लयूपी, 3 ग्रामप्रति लीटर या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लूपी, 1 ग्रामप्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें| कार्बेन्डाजिम का बाजार मूल्य 300 प्रति किग्रा0।
  2. रोगरोधीकिस्मेंजैसे- सीओबीजी-10, एलबीजी- 648, एलबीजी- 17, प्रभा, आईपीयू- 02-43, एकेयू- 15 औरयूजी- 301 उगानी चाहिए|

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कटाई एवं मड़ाई

जब 70 से 80 प्रतिशत फलियां पक जाएं, हँसिया से कटाई आरम्भ कर देना चाहिए| तत्पश्चात बण्डल बनाकर फसल को खलिहान में ले आते हैं| 3 से 4 दिन सुखाने के पश्चात श्रेसर द्वारा भूसा से दाना अलग कर लेते हैं|

पैदावार

उपरोक्त विधि से प्रबंधन की गई फसल से 12 से 17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक दाने की पैदावार मिल जाती है|

भण्डारण धूप में अच्छी तरह सुखाने के बाद जब दानों में नमी की मात्रा 8 से 9 प्रतिशत या कम रह जाये, तभी फसल को भण्डारित करना चाहिए|

अधिक उत्पादन लेने हेतु आवश्यक बिंदू

  1. भूमि की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई तीन वर्ष में एक बार अवश्य करे|
  2. पोषक तत्वो की मात्रा मिटटी परीक्षण के आधार पर ही दें|
  3. बुवाई पूर्व बीजोपचार अवश्य करे|
  4. पीला मोजेक रोग रोधी किस्मों का चुनाव क्षेत्र की अनुकूलता के अनुसार करे|
  5. पौधसंरक्षणसमयपरकरनाचाहिए|6. खरपतवारनियंत्रणअवश्यकरे|

 

 

उर्द लागत प्रति है0 (रूपये में)
जुताई तीन जुताई 2.50 घन्टा प्रति है0 / 450 प्रति घन्टा 3375
पाटा लगाना 1200
 योग 4575
बीज 15 किग्रा0 / 84.20 रू0 किग्रा0 1263
सिंचाई दो सिंचाई, 15 घन्टे प्रति है0 / 100 प्रति घन्टा 3000
बुबाई 4 श्रेमिक प्रति है0 / 300 रू0 1200
योग 5463
उर्वरक डी0ए0पी0 100 किग्रा0 / 23.00 रू0 प्रति किग्रा0 2300
योग 2300
बीज शोधन कार्बेन्डाजिम 50 ग्राम / 386 रू0 प्रति किग्रा 20
राइजोवियम कल्चर 2 पैकेट / 7 प्रति पैकेट 14
भूमि शोधन ट्राइकोडर्मा 2.5 किग्रा0 / 100 रू0 प्रति किग्रा0 250
बेबरियान-बेसियाना 2.5 किग्रा / 100 रूपये प्रति किग्रा 250
फली छेदक कीट क्यूनाफॉस 35 ई0सी0 1.5 ली0 / 419 प्रति ली0 630
योग 1164
कटाई मढ़ाई आदि 30 श्रमिक /  300 रू0 प्रति श्रमिक 9000
  vU; O;; 3000
योग 12000
महायोग 25502

उत्पादन – 12 कु0 प्रति हे0

न्यूनतम बिक्री मूल्य – 5700 रूपये प्रति कु0

उपज से प्राप्त कुल धनाशि – 12×5700 = 68400 रूपये

शुद्ध लाभ – 6840025502 = 42898 रूपये

लाभ-लागत अनुपात = 1:1.68

मसूर की खेती

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परिचयः-  रबी की दलहनी फसलों में मसूर की खेती (Lentil Farming) का प्रमुख स्थान है।  मसूर की खेती जनपद में लगभग 1750 क्षे0/है0 पर की जाती है। जनपद मे मसूर की उत्पादकता अत्यन्त निम्न (6.80 कु0/हे0) कुल उत्पादन 1173 मै0टन है। जिसका प्रमुख कारण उचित जल निकास तथा समय से बुवाई न करना है।

जलवायु

मसूर की खेती  की वानस्पतिक वृद्धि के लिए ठंडी जलवायु तथा पकने के समय गर्म जलवायु की आवश्यकता पड़ती है| सामान्यता: मसूर फसल के लिए 20 डिग्री से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है| इस प्रकार की जलवायु में मसूर की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है|

भूमि का चयन

फलीदार फसल होने के कारण मसूर की खेती सभी प्रकार की बलुई दोमट से लेकर काली दोमट भूमि में की जा सकती है| लेकिन इसकी अच्छी उपज के लिए रेतीली दोमट एवं दोमट भूमि सर्वोतम मानी जाती है| मिटटी का पीएच मान 4.5 से 8.2 होना चाहिए|

खेत की तैयारी

अच्छी पैदावार के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए| इसके पश्चात दो से       तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करने के पश्चात पाटा लगाकर खेत को समतल तैयार कर लेना चाहिए| खेत का भुरभुरा होना अति आवश्यक है| आखरी जुताई के समय 15 से 20 टन गली सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिटटी में मिला दें|

 

उन्नत किस्में

क्र0स0 किस्म का नाम पकने की अवधि (दिन) उत्पादन क्षमता (कु0/है0)
1 आई0पी0एल0-81 120-125 18-20
2 नरेन्द्र मसूर-1 135-140 20-22
3 डी0पी0एल0-62 130-135 18-20
4 पन्त मसूर-5 130-135 18-20
5 पन्त मसरू-4 135-140 18-20

बुआई का समय

सामान्यतः मसूर 1 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक बोई जाती है| इसका बोने का समय क्षेत्र विशेष की जलवायु अनुसार भिन्न हो सकता है| जैसे उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में बुवाई का सर्वोत्तम समय अक्टूबर के अन्त में, जबकि उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्र में नवम्बर का द्वितीय पखवाड़ा उपयुक्त होता है| क्योंकि इस समय यहाँ पर्याप्त नमी बुवाई के समय होती है| इस तरह मध्य क्षेत्र जहाँ नमी मुख्य रूकावट है, अग्रेती बुवाई मध्य अक्टूबर में उपयुक्त रहती है|

बीज की मात्रा

  1. छोटे दानों वाली किस्मों के लिए 40 से 45 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा उचित मानी जाती है|
  2. बड़े दानों वाली प्रजातियों के लिए 55 से 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा उचित मानी जाती है|
  3. पानी भराव वाले क्षेत्रों के लिए 60 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा उचित मानी जाती है|

बीज शोधन

मसूर की खेती को बीज जनित फफूंदी रोगों से बचाव के लिए थीरम एवं कार्बेन्डाजिम (2:1) से 3 ग्राम या थीरम 3.0 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रतिकिलो ग्राम बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए| तत्पश्चात कीटों से बचाव के लिए बीजों को क्लोरोपाइीफास  20 ईसी, 8 मिलीलीटर प्रतिकिलो ग्राम बीज की दर से उपचारित कर लें|

जैविक बीजोपचार

मसूर की नये क्षेत्रों में बुआई करने पर बीज को राइजोबियम के प्रभावशाली स्ट्रेन से उपचारित करने पर 10 से 15 प्रतिशत की उपज वृद्धि होती है| 10 किलोग्राम मसूर के बीज के लिए राइजोबियम कल्चर का एक पैकेट पर्याप्त होता है| 100 ग्राम गुड़ को 1 लीटर पानी में घोलकर उबाल लें| घोल के ठंडा होने पर उसमें राइजोबियम कल्चर मिला दें| इस कल्चर में 10 किलोग्राम बीज डालकर अच्छी प्रकार मिला लें ताकि प्रत्येक बीज पर कल्चर का लेप चिपक जायें|

उपचारित बीज को कभी भी धूप में न सुखायें व बीज उपचार दोपहर के बाद करें| राइजोबियम कल्चर न मिलने की स्थिति में उस खेत से जहाँ पिछले वर्ष मसूर की खेती की गयी हो 100 से 200 किलोग्राम मिट्टी खुरचकर बुआई के पूर्व खेत में मिला देने से राइजोबियम बैक्टिीरिया खेत में प्रवेश कर जाता है तथा अधिक वातावरणीय नत्रजन का स्थिरीकरण होने से उपज में वृद्धि होती है|

बुआई की विधि

बुआई देशी हल या सीडड्रिल से पंक्तियों में करें| सामान्य दशा में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 सेंटीमीटरतथा पंक्ति में पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर व देर से बुआई की स्थिति में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर ही रखें पौधे से पौधे की बीच की दूरी 5 से 7 सेंटीमीटर रखे| बीज 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए| उतेरा विधि से बोआई करने हेतु कटाई से पूर्व ही धान की खड़ी फसल में अन्तिम सिंचाई के बाद बीज छिटककर बुआई कर देते है|

इस विधि में खेत तैयार करने की आवश्यकता नहीं होती, किन्तु अच्छी उपज लेने के लिए सामान्य बुआई की अपेक्षा 1.5 गुना अधिक बीज दर का प्रयोग करना चाहिए| पानी भरा व वाले क्षेत्रों में वर्षा का पानी हटने के बाद, सीधे हल से बीज नाली बनाकर बुआई की जा सकती है| गीली मिट्टी वाले क्षेत्रों में जहाँ हल चलाना संभव न हो बीज छींटकर बुआई कर सकते हैं| लेकिन अच्छी उपज के लिए मसूर की बुआई सीडड्रिल या हल के पीछे पंक्तियों में ही करना चाहिए|

खाद और उर्वरक

मृदा परीक्षण के आधार पर समस्त उर्वरक अन्तिम जुताई के समय हलके पीछे कूड़ में बीज की सतह से 2 सेंटीमीटर गहराई व 5 सेंटीमीटर साइड में देना सर्वोत्तम रहता है| सामान्यतः मसूर की फसल को प्रति हैक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस एवं 20 किलोग्राम गंधक की आवश्यकता होती है| नत्रजन एवं फॉस्फोरस की संयुक्त रूप से पूर्ति हेतु 100 किलोग्राम डाइअमोनियम फॉस्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने पर उत्तम परिणाम प्राप्त होते हैं|

गौण एवं सूक्ष्म पोषक तत्व

गंधक (सल्फर)- 20 किलोग्राम गंधक (154 किलोग्राम जिप्सम/फॉस्फो-जिप्सम या 22 किलोग्राम बेन्टोनाइट सल्फर) प्रति हैक्टर की दर से बुवाई के समय प्रत्येक फसल के लिये देना पर्याप्त होता है| कमी ज्ञात होने पर लाल बलुई मृदाओं के लिए 40 किलोग्राम गंधक (300 किलोग्राम जिप्सम/फॉस्फो-जिप्सम या 44 किलोग्राम बेन्टोनाइट सल्फर) प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए|

बोरॉन 1.6 किलोग्राम बोरॉन (16.0 किलोग्राम बोरेक्सया 11 किलोग्राम डाइसोडियम टेट्राबोरेट पेन्टाहाइड्रेट) प्रति हैक्टर की दर से बुवाई के समय में प्रत्येक फसल में देना चाहिए|

सिंचाई प्रबन्धन

पानी भराव वाले क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में वर्षा न होने पर मसूर की खेती से अधिक उपज लेने के लिए बुआई के  40 से 45 दिन बाद व फली में दाना भरते समय सिंचाई करना लाभप्रद रहता है या फसल की आवश्यकतानुसार सिंचाई करें|

खरपतवार नियंत्रण

रासायनिक खरपतवार नियंत्रण हेतु बुआई के तुरन्त बाद (48 घंटे के अंदर) खरपतवारनाशी रसायन पेन्डीमिथलीन 30 ईसी का 0.75 से 1 किलोग्राम सक्रिय तत्व(2.5 से 3 लीटर व्यापारिक मात्रा) प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव किया जाना चाहिए| बुआई से 25 से 30 दिन बाद एक निंराई करना पर्याप्त रहता है| यदि दूसरी निंराई की आवश्यकता हो तब बुवाई के  40 से 45 की फसल अवस्था पर करनी चाहिए| फसल बुवाई से 45 से 60 दिन तक खरपतवार मुक्त होनी चाहिए|  पेंडिमेथालिन 30 ईसी (340 प्रति लीटर)

कीट एवं रोग रोकथाम

फली छेदक मसूर की खेती में इस कीट का प्रकोप होने पर प्रोफेनोफॉस 50 ईसी, 2 मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी या इमामेक्टिंन बेन्जोएट 5 एसजी 0.2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करें| प्रोफेनोफॉस का बाजार मूल्य 600 प्रति लीटर।

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माहू (एफिड)- इस कीट से बचाव के लिए प्रकोप आरम्भ होते ही डायमिथोएट 30 ईसी, 1.7 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या इमिडाक्लोरोप्रिड 17.8 एसएल की 0.2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करे| डायमिथेएट का बाजार मूल्य 520 प्रति लीटर

रतुआ (रस्ट)- समय से बुआई करें, रोगरोधी/सहनशील किस्मों जैसे- पन्तमसूर- 4, पन्तमसूर- 639, पन्तमसूर- 6, पन्तमसूर- 7, के एलएस- 218, आईपीएल- 406, डब्लूबीएल- 77, एलएल- 931, आईपीएल- 316, आदि से चुनाव करें| बचाव के लिए फसल पर मैंकोजेब 75 डब्लूपी कवक नाशीका 0.2 प्रतिशत (2 ग्रामप्रति लीटरपानी) घोल बनाकर बुवाई के 50 दिन बाद छिडकाव करें तथा दूसरा 10 से 12 दिन के बाद जरूरत के हिसाब से करें| मैंकोजेव का बाजार मूल्य 300 प्रति किग्रा0Masoor

उकठा (विल्ट)- बुवाई से पूर्व बीज को थायरम व कार्बेन्डाजिम (2:1) 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर के ही बोनी करें, उकठा निरोधक एवं सहनशील किस्मों जैसे पन्तमसूर- 5, आईपीएल- 316, आरवीएल- 31, शेखर मसूर- 2, शेखरमसूर- 3 इत्यादि उगायें| कार्बेन्डाजिम का बाजार मूल्य 320 प्रति किग्रा0

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कटाई एवं मड़ाई

मसूर की खेती की जब 70 से 80 प्रतिशत फलियाँ पक जाएं, कटाई आरम्भ कर देना चाहिए| तत्पश्चात बण्डल बनाकर फसल को खलिहान में ले आते हैं| 3 से 4 दिन सुखाने के पश्चात श्रेसर द्वारा भूसा से दाना अलग कर लेते हैं|

पैदावार

उपरोक्त उन्नत सस्य विधियों और नवीन किस्मों की सहायता से मसूर की खेती करने पर प्रति हेक्टेयर 15 से 25 क्विन्टल तक उपज प्राप्त की जा सकती है|

भंडारण

भंडारण के समय दानों में नमी 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए| भण्डार गृह में 2 गोली एल्युमिनियम फास्फाइड प्रति टन रखने से भण्डार को कीटों से सुरक्षा मिलती है| भंडारण के दौरान मसूर को अधिक नमी से बचाना चाहिए|

अधिक उत्पादन लेने हेतु आवश्यक बिंदू

  1. ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई तीन वर्ष में एकबार अवश्य करें|
  2. पोषक तत्वों की मात्रा मिटटी परीक्षण के आधार पर ही दें|
  3. मसूर की खेती हेतु बुवाई पूर्व बीजोपचार अवश्य करें|
  4. रस्ट (किट्ट) व उकठा रोगरोधी या सहनशील किस्में उगायें|
  5. पौध संरक्षण के लिये एकीकृत पौध संरक्षण के उपायों को अपनाना चाहिए|
  6. खरपतवार नियंत्रण अवश्य करें|

 

मसूर लागत प्रति हे0 (रूपये में)
जुताई तीन जुताई 2.50 घन्टा प्रति हे0 प्रति जुताई / 450    3375
 प्रति घन्टा    1200
योग 4575
बीज 50 किग्रा0 / 72.80 रू0 प्रति किग्रा0 7280
सिंचाई दो सिंचाई, 15 घन्टे प्रति हे0 / 100 प्रति घन्टे 3000
बुवाई 4 श्रमिक प्रति हे0 / 300 रू0 प्रति श्रमिक 1200
योग 11480
उर्वरक डी0ए0पी0 100 किग्रा0 / 23.00 रू0 प्रति किग्रा0 2300
योग 2300
कृषि रक्षा रसायन
बीज षोधन कार्बेन्डाजिम 50 ग्राम / 386 रू0 प्रति किग्रा0 20
राइजोबियम कल्चर 5 पैकेट / 7 प्रति पैकेट 35
भूमि षोधन ट्राइकोडर्मा 2.5 किग्रा0 / 100 रू0 प्रति किग्रा0 250
पाउडरीमिलड्यू -कार्बेडिाजिम 500 ग्राम प्रति हे0 / 386 दो वार 386
माहू डाईक्लोरोवास 1 ली0 / 288 प्रति ली0 288
योग 979
कटाई मढाई आदि 25 श्रमिक / 300 रू0 प्रति श्रमिक 7500
अन्य व्यय 3000
योग 10500
महायोग 29834

उत्पादन – 18 कु0 प्रति हे0

न्यूनतम बिक्री मूल्य – 4475 रूपये प्रति कु0

उपज से प्राप्त कुल धनराषि – 18×4475 = 80550 रूपये

षुद्ध लाभ 80550-29834 = 50716 रूपये

लाभ-लागत अनुपात = 1:1.70

मक्का की खेती

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परिचय:

मक्का की खेती जनपद रामपुर में साठा धान के विकल्प के रूप में संन्तुत की जाती है। वित्तीय वर्श 2019-20 में ग्रीश्मकालीन मक्का को कृशकों द्वारा व्यापक स्तर पर अपनाय गया। मक्का की खेती बिलासपुर, स्वार, सदर, एवं षाहबाद में लगभग 700 है0 भूमि पर उगाई गयी। संकर मक्का की उत्पादकता जनपद में 70-80 कु0प्रति0 है0 पायी गयी।

इसके गुणकारी होने के कारण पहले की  तुलना में आज के समय इसका उपयोग मानव आहार के रूप में ज्यादा होता है| इसके गुण इस प्रकार है, कार्बोहाइड्रेट 70, प्रोटीन 10 और तेल 4 प्रतिशत पाया जाता है| ये सब तत्व मानव शरीर के लिए बहुत ही आवश्यक है| साथ ही साथ यह पशुओं का भी प्रमुख आहkर है| अन्य फसलों की तुलना मे मक्का (Maize) अल्प समय में पकने और अधिक पैदावार देने वाली फसल है| अगरकिसान भाई थोड़े से ध्यान से और आज की तकनीकी के अनुसार खेती करे, तो इस फसल की अधिक पैदावार से अच्छा मुनाफा ले सकते है|

जलवायु:-

मक्का की खेती विभिन्न प्रकार की जलवायु में की जा सकती है, परन्तु उष्ण  क्षेत्रों में मक्का की वृद्धि, विकास एवं उपज अधिक पाई जाती है| यह गर्म ऋतु की फसल है| इसके जमाव के लिए रात और दिन का तापमान ज्यादा होनाचाहिए| मक्के की फसल को शुरुआत के दिनों से भूमि में पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है| जमाव के लिए 18 से 23 डिग्री सेल्सियस तापमान एवं वृद्धि व विकास अवस्था में 28 डिग्री सेल्सियस तापमान उत्तम माना गया है|

भूमि

मक्का की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है| परंतु मक्का की अच्छी बढ़वार और उत्पादकता के लिए दोमट एवं मध्यम से भारी मिट्टी जिस में पर्याप्त मात्रा में जीवांश और उचित जल निकास का प्रबंध हो, उपयुक्त रहती है| लवणीय तथा क्षारीय भूमि यां मक्का की खेती के लिए उपयुक्त नहीं रहती|

अंतवर्तीय फसलें

मक्का की विभिन्न अवधियों में पकने वाली प्रजातियां उपलब्ध हैं जिसके कारण मक्का को विभिन्न अन्र्त फसलीरण खेती के रूप में आसानी से उगाया जा सकता है| मक्का के मुख्यअंतः फसल पद्धतियां इस प्रकार हैं, जैसे-

  1. मक्का + उडद, ग्वार व मुंग|
  2. 2.मक्का + तिल, सोयाबीन आदि|

मक्के की फसल में अंतरवर्तीय फसलों को  2:2, 2:4 या 2:6 अनुपात में लगाया जा सकता है, परंतु 1:1 सबसे उपयुक्त पाया गया है|

भूमि की तैयारी

पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें| उसके बाद 2 से 3 जुलाई हैरो या देसी हल से करें, मिट्टी के ढेले तोड़ने एवं खेत सीधा करने हेतु हर जुताई के बाद पाटा या सुहागा लगाएँ| यदि मिट्टी में नमी कम हो तो पलेवा करके जुताई करनी चाहिए| सिंचित अवस्था में  60 सेंटीमीटर की दूरी पर मेड़े बनानी चाहिए जिससे जल निकासी में आसानी रहती है और फसल भी अच्छी बढ़ती है|

उन्नत किस्में

क्र0स0 किस्म का नाम फसल पकने की अवधि (दिन) उत्पादन क्षमता (कु0/है0) बीज का बाजार मूल्य (रू0/किग्रा0)
1 गंगा-11 150-155 70-80 280
2 शक्तिमान-01 150-155 70-80 280
3 सीडटेक-2324 155-160 70-80 280
4 एच0क्यू0पी0एम0-01 150-160 70-80 350
5 के0एच0-5991 155-160 70-80 280

 

बीज दर  20-22 कि0ग्रा0/है0।

 

बीज उपचार

फसल को शुरूआती अवस्था में रोगों से बचाने के लिए बीज उपचार बहुत जरूरी है| बीज उपचार पहले फफूदीनाशक से करें, फिर कीटनाशक से व अंत में जैविक टीके से करें| हर चरण के बाद बीज सूखा लें, चरण इस प्रकार है, जैसे-

फफूदीनाशक बीज उपचार बुवाई पूर्व बीज को थायरम या कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम प्रतिकिलो बीज की दर से उपचारित करें, इन्हें पानी में मिलाकर गीला पेस्ट बनाकर बीज पर लगाएं|

कीटनाशक बीज उपचार बीज और नए पौधों को रस चूसक एवं मिट्टी में रहने वाले कीटों से बचाने के लिए कीट नाशक से बीज उपचार जरूरी है| बीज को थायोमेथोक्जाम या इमिडाक्लोप्रिड 1 से 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें|

जैविक टीके से बीज उपचार फफूदीनाशक तथा कीटनाशक से उपचार के बाद बीज को एजोटोबेक्टर 5 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करके तुरंत बुवाई करें|

बुवाई का समय

  1. मुख्य फसल के लिए बुवाई मई के अंत तक करें|
  2. शरद कालीन मक्का की बुवाई अक्टूबर अंत से नवंबर तक करें|
  3. बसंत ऋतु में मक्का की बुवाई हेतु सही समय जनवरी के तीसरे सप्ताह में मध्य फरवरी तक है|
  4. बुवाई में देरी करने से अधिक तापमान तथा कम नमी के कारण बीज कम बनता है|
  5. यदि बारिश न होने के कारण बुवाई में देरी हो जाए तो फलीदर फसलों की अंतर फसल लगाएं|

बिजाई की दूरी

  1. बीज हाथों द्वारा या सीडड्रिल से बोया जा सकता है|
  2. बीज को 75  सेंटीमीटर दूर कतारों या मंड़ों पर बोएं, बीज से बीज (पौधे से पौधे) का अंतर  22 सेंटीमीटर रखें, इस तरह प्रति एकड़ 21000 पौधे लगेंगे|
  3. अधिक पैदावार हेतु पौधों को 75 सेंटीमीटर दुरी की कतारों में पौधो से पौधे में 20 सेंटीमीटर का अंतर रखकर बुवाई करे, इस तरह 26000 पौधे प्रति एकड़ लगेंगे|
  4. बीज की गहराई 3 से 5 सेंटीमीटर रखें|
  5. मेड़ों पर बुवाई करनी हो तो बीज पूर्व पश्चिम दिशा में बनी मेड़ों की दक्षिण ढलान पर बीज बोएं|
  6. छिड़काव विधि की जगह बुवाई कतारों में करें|

खरपतवार नियंत्रण

मक्का की खेती को 30 से 40 दिन तक खरपतवार मुक्त रखना जरूरी है, जिसके लिए 1 से 2 निराई गुड़ाई की जरूरत होती है| पहली गुडाई बुवाई के 25 से 30 दिन पर व दूसरी बुवाई 40 से 45 दिन पर करें|

रासायनिक खरपतवार नियंत्रण

  1. बुवाई के 2 दिन के अंदर एट्राजिन 50 डबल्यूपी या पेंडिमेथालिन 30 ईसी (340 प्रति लीटर) या एलाक्लोर 50 ईसी 1 किलोग्राम प्रति एकड़ (230 प्रति लीटर) या फ्लूक्लोरालिन 45 ईसी ( 230 प्रति लीटर) 900 मिली लीटर प्रतिएकड़ 200 लीटर पानी के साथ छिड़कें
  2. छिड़काव हेतु फ्लेटफैन या फ्लडजेटनो जल प्रयोग करें|
  3. अच्छे परिणाम हेतु एक ही रसायन हरसाल न छिड़कें|
  4. यदि बुवाई सूखी जमीन में की है तो खरपतवारनाशी का छिड़काव पहली बारिश के 48 घंटे के अंदरकरें|

शस्य क्रियाएँ

  1. असिंचित क्षेत्रों में कतारों के बीच काली पोलिथीन या धान या गेहूं की पुवाल या सूखे घास का पलवार (मल्च) बिछानी चाहिए| इससे खरपतवार नियंत्रित होते हैं व सूखे की स्थिति में मिट्टी की नमी संरक्षित रहती है|
  2. जहां बुवाई मे कूडों की जगह सीधी जमीन पर की गई है वहां फसल के घुटने तक होने पर मिट्टी चढ़ाए| इससे पौधों को सहारा मिलता है व फसल गिरती नहीं है|
  3. मक्का की फसल खेत में खड़ा पानी बिल्कुल सहन नहीं कर सकती, खेत से जल निकासी का सही प्रबंध करना जरूरी है|

जैविक खाद व जैव उर्वरक

  1. हर 1 से 2 साल में मिट्टी परीक्षण करवाना चाहिए| इससे मिट्टी में पोषक तत्वों का पता चलता है| जिससे खाद का सही उपयोग किया जा सकता है|
  2. बुवाई से 10 से 15 दिन पहले 6  से  8 टन प्रति एकड़ गोबर खाद या 3 से 4 कुंतल प्रति एकड़ केंचुआ खाद डालें|
  3. मिट्टी जनित रोगों को रोकने के लिए ट्राइकोडर्मा व सूडोमोनास (प्रत्येक 1 से 2 किलोग्राम प्रति एकड़) 50 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर खेत में बिखेरकर मिट्टी में मिलाएं|

रासायनिक खाद

  1. बुआई से पहले प्रति एकड़ 75 किलोग्राम डीएपी, 50 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश तथा 10 किलो जिंकसल्फेट और 12 से 15 किलो बेंटोनाईट सल्फर डालें|
  2. बुआई के बाद पहली बार-बुआई से 20 दिन बाद 50 किलोग्राम यूरिया, दूसरी बार 35 से 40 दिनों में 50 किलोग्राम यूरिया डालें, तीसरी बार 50 किलोग्राम यूरिया +25 किलोग्राम एमओपी प्रति एकड़ भुट्टे रेशे निकलते समय डालें|

सिंचाई प्रबंधन

बसंत (जायद) की फसल को अधिक सिंचाई की जरूरत होती है| सही समय पर सिंचाई न करने से पैदावार में भारी कमी आ जाती है| पहली सिंचाई बुवाई के 15 से 20 दिन बाद करें| उसके बाद फसल घुटने तक होने पर, नरफूल निकलने पर, भुटा बनते वक्त व दाना भरते वक्त सिंचाई जरूर करें| फसल को 5-6 सिंचाईचाहिए|

सिंचाई के जरूरी चरण नए पौधे निकलने पर, फसल घुटने तक होने पर, नरफूल निकलने पर व भुट्टा बनते वक्त सिंचाई बेहद जरूरी है|  90 प्रतिशत दाना भराई तक सिंचाई जरूर करें|

सूक्ष्म सिंचाई मक्का की हर दो कतारों के लिए एक ड्रिप लाईन काफी है| ड्रिप्रर की दूरी  30 से 40 सेंटीमीटर रखें| पानी की बहाव दर 1 से 1.5 लीटरप्रति घंटारखें| मौसम के अनुसार हर दूसरे दिन 3 से 5 घंटे के लिए सुबह के समय ड्रिप चलाएं|

कीट प्रबंधन :

 

तना मक्खी तना मक्खी का प्रकोप बसंत की फसल में अधिक होता है| तने की मक्खी 3 से 4 दिन के पोधौं पर हमला कर पौधे को टेढ़ा व खोखला कर देती है|

नियंत्रण मिट्टी को 2 से 3 मिलीलीटर फिप्रोनिल  प्रतिलीटर पानी की दर से भिगोएँ।  फिप्रोनिल का बाजार मूल्य 350 प्रति लीटर है।

 

तना भेदक सुंडी तना भेदक सुंडी तने में छेदकर के उसे अंदर से खाती है| जिससे गोभ एवं तना सूख जाता है|

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नियंत्रण रोकथाम हेतु बुवाई के 2 से 3 हफ्ते बाद क्वीनालफॉस 30 मिलीलीटर या क्लोरेन्ट्रानीलीप्रोल 3 से 4 मिलीलीटर या स्पीनोसेड 4 से 5 मिलीलीटर प्रति 15 लीटर पानी में छिड़कें| कार्बोफ्यूरान 3 जी के 8 से 10 दाने पौधे की गोभ में बुवाई के 30 दिन बाद डालें एवं 45 दिन बाद फिर डालें| क्यूनालफास का बाजार मूल्य 280 प्रति लीटर है।

 

 

कटुआ कटुआ की काले रंग की सूंडी है, जो दिन में मिट्टी में छुपती है| रात को नए पौधे मिट्टी के पास से काट देती है| रोक न करने पर पूरा नुकसान हो सकता है|

नियंत्रण रोकथाम हेतु कटे पौधे की मिट्टी खोदे, सुंडी को बाहर निकालकर नष्ट करें एवं स्वस्थ पौधों की मिट्टी को क्लोरोपायरीफास 10 ईसी 3 मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी से भिगोएँ| तना मक्खी की रोकथाम के उपाय से इसकी भी रोक होती है| क्यूनालफास क्लोरोपायरीफास का बाजार मूल्य 280 प्रति लीटर है।

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पत्ती लपेटक सँडी पत्ती लपेटक सुंडी पत्ती को लपेटकर उसके अंदर का हरा पदार्थ खाती है| पत्ती सफेद पड़कर गिर जाती है|

नियंत्रण रोकथाम हेतु क्वीनालफॉस 30 मिलीलीटर या ट्राइजोफॉस 30 मिलीलीटर याक्लोरेन्ट्रानीलीप्रोल 3 से 4 मिलीलीटर या स्पीनोसेड 4 से 5 मिलीलीटर प्रति 15 लीटर छिड़के| क्यूनालफास का बाजार मूल्य 280 प्रति लीटर है।

 

सैनिक सुंडी सैनिक सुंडी हल्के हरे रंग की, पीठ पर धारियॉ और सिर पीले भूरे रंग  का होता है| बड़ी सुंडी हरी भरी और पीठ पर गहरी धारियाँ होती हैं| यह कुंडमार के चलती है| सैनिक सुंडी ऊपर के पत्ते और बाली के नर्म तने को काट देती है| अगर सही समय पर सुंडी की रोकथाम न की तो फसल में 3 से 4 क्विंटलझाड़ कम कर देती है| अगर 4 सैनिक सुंडी प्रतिवर्ग फुट मिलें तो इनकी रोकथाम आवश्क हो जाती है

नियंत्रण- 100 ग्राम कार्बरिल 50 डब्लूपीया 40 मिलीलीटर फेनवेलर 20 ईसी या 400 मिलीलीटर क्वीनालफॉस 25 प्रतिशत ईसी प्रति 100 लीटर पानी प्रतिएकड़ छिड़के| क्यूनालफास का बाजार मूल्य 280 प्रति लीटर है।

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सफेद लट सफेदलट (कुरमुला) कई फसलों को हानी पहुंचाने वाला भयंकर कीट है| ये  मिट्टी में रहकर जड़ों को खाता है, अधिक प्रकोप होने पर 80 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है| ये एक सफेद रंग की सुंडी होती है, जिसका मुंह पीला व पिछला हिस्सा काला होता है| छूने पर येसी आकार धारण कर लेता है|  

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नियंत्रण

  1. खेत में कच्चा गोबर न डालें|
  2. खेत तैयार करते समय 1 से 2 गहरी जुताई करके इन्हें बाहर निकालें ताकि पक्षी इन्हें खा जाएं|
  3. खेत तैयार करते समय व मिट्टी चढ़ाते समय 5 किलोग्राम फोरेट या 6 किलोग्राम फिप्रोनील प्रतिएकड़ डालें| फोरेट का बाजार मूल्य 35 प्रति किग्रा0 है।

 

  1. नुकसान दिखाई देने पर पौधों की जड़ो के पास क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी 40 मिलीलीटर प्रति 15 लीटर पानी के घोल से भिगोएं| क्लोरोपायरीफास का बाजार मूल्य 280 प्रति लीटर है।

 

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रोग नियंत्रण

पत्ती झुलसा पत्तीझुलसानिचलीपत्तियोंसेशुरुहोकरऊपरकीओरबढ़ताहै| लंबे, अंडाकार, भूरेधब्बेपत्तीपरपड़तेहैं, जोपत्तेकीनिचलीसतहपरज्यादासाफदिखतेहैं|

नियंत्रण रोकथाम हेतू 2.5 ग्राम मेन्कोजेब या 3 ग्राम प्रोबिनब या 2 ग्राम डाईथेनजेड- 78 या 1 मिलीलीटर फेमोक्साडोन 16.6 प्रतिशत + सायमेक्सानिल 22.1 प्रतिशत एससी या 2.5 ग्राम मेटालैक्सिल–एम या 3 ग्राम सायमेक्सेनिल + मेंकोजब प्रतिलीटर पानी में छिड़कें 10 दिन बाद फिर छिड़काव करें| मेन्कोजेब का बाजार मूल्य 300 प्रति किग्रा0 है।

जीवाणु तना सड़न जीवाणु तना सड़न में मुख्य तना मिट्टी के पास से भूरा  ,पिलपिला एवं मुलायम होकर वहां से टूट जाता है| सड़ते हुए भाग से शराब जैसी गंध आती है|

नियंत्रण रोकथाम हेतु अधिक नाइट्रोजन न डालें, खेत में पानी खड़ा न रहने दें| खेत में बुवाई के वक्त, फिर गुडाई के वक्त व फिर नरफूल निकलने पर 6 किलोग्राम प्रति एकड़ ब्लीचिंग पाउडर तने के पास डालें| इसे यूरिया के साथ कतई भी न मिलाएं, दोनों को कम से कम 1 हफ्ते अंतर पर डालें| ब्लीचिंग पाउडर का बाजार मूल्य 280 प्रति किग्रा0 है।

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भूरा धारीदार मृदुरोमिल आसिता रोग भूराधारीदारमृदुरोमिलआसितारोगमेंपत्तेपरहल्कीहरीयापीली, 3 से 7 मिलीमीटरचौड़ीधारियॉपड़तीहैं, जोबादमेंगहरीलालहोजातीहै| नममौसममेंसुबहकेसमयउनपरसफेदयाराखकेरंगकीफफूदनजरआतीहै|

नियंत्रण रोकथाम हेतु लक्षण दिखने पर मेटालेक्सिल + मेंकोजेब 30 ग्रामप्रति 15 लीटर पानी का छिड़काव करें, 10 दिन बाद पुनः दोहराएं मेटालेक्सिल का बाजार मूल्य 225 प्रति किग्रा0 है।

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रतुआ पत्तोंकीसतहपरछोटे, लालयाभूरे, अंडाकार, उठेहुएफफोलेपड़तेहैं| येपत्तेपरअमूमनएककतारमेंपड़तेहैं|

नियंत्रण रोकथाम हेतु हैक्साकोनाजोल या प्रोपिकोनाजोल 15 मिलीलीटरप्रति 15 लीटर पानी में छिड़कें,15 दिन बाद पुनः दोहराएं| हैक्साकोनाजोल का बाजार मूल्य 210 प्रति लीटर है।

फसल कटाई

जब भुट्टे को ढकने वाले पत्ते पीले या भूरे होने लगे एवं दानो की नमी 30 प्रतिशत से कम हो जाए तो फसल काट लेनी चाहिए भुट्टे काटने पर पौधा हरा रहता है, उसे पशु के चारे हेतु प्रयोग करें|

 

प्रसंस्करण व मूल्यसंवर्धन

मक्का के भुट्टों को धूप में तब तक सुखाएं जब तक दाना कठोर न हो जाए व उसमे नमी 12 से 14 प्रतिशत हो जाए| फिर भुट्टों को बोरी में भरकर मंडी ले जा सकते हैं| दाने को भुट्टे से निकालने के लिए ध्यान रखें की वो इतने सूखे हो कि हाथ या थ्रेसर से गहाई करते समय उन्हें नुकसान न हो|

पैदावार

उपरोक्त विधि से मक्का की फसल से औसतन पैदावार संकर किस्म से 70 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टयर होनी चाहिए

 

मक्का लागत प्रति हे० (रुपये में)
जुताई 2 जुताई 2.5 घन्टा प्रति जुताई @ 450 रुपये प्रति घन्टा पाटा लगाना 2250
पाटा लगाना 1200
योग 3450
बीज 20 किग्रा० @ 350 रु० प्रति किग्रा० 7000
बुवाई 4 श्रमिक प्रति हे० @ 300 रुपये प्रति श्रमिक 1200
सिंचाई 6 सिंचाई, 15 घन्टे प्रति हे० @ 100 रु० प्रति घन्टा 9000
योग 17200
उर्वरक
डी०ए०पी० 165 किग्रा० @ 23.00 रु० प्रति किग्रा 3795
यूरिया 264 किग्रा० @ 5.92 रु० प्रति किग्रा 1565
पोटाश 100 किग्रा० @ 19 रु० प्रति किग्रा 1900
जिंक 25 किग्रा० @ 85 रु० प्रति किग्रा 2125
योग 9385
कृषि रक्षा रसायन
बीज शोधन कार्बेन्डाजिम 12.5 ग्राम @ 386 रु० प्रति किग्रा० 5
कार्बेन्डाजिम 2 किग्रा @ 300 रु० प्रति किग्रा० 600
क्लोरोपायरीफॉस 1.5 किग्रा @ 280 रु० प्रति किग्रा० 420
कीटनाशक क्यूनाल फॉस 1.5 लीटर @ 419 रु० प्रति लीटर 629
योग 1654
कटाई मढाई 24 श्रमिक @300 रु० प्रति श्रमिक 7200
अन्य व्यय 3000
योग 10200
महायोग 41889

 

उत्पादन – 80 कु0 प्रति हे0

बिक्री मूल्य – 1600 रूपये प्रति कु0

उपज से प्राप्त कुल धनराशि –80*1600=128000 रूपये

शुद्ध लाभ – 128000-41889 = 86111 रूपये

लाभ-लागत अनुपात = 1:2.05

मल्टीग्रेन आटा के रूप मे बिक्री करने पर  / 2500 रूपये प्रति कु0

आटा के रूप मे बिक्री करने पर कुल आय =200000 रूपये।

शुद्ध लाभ=200000-41889=158111 रूपये।