मत्स्य विभाग
जनपद रामपुर में नयी तकनीक के साथs मत्स्य विकास
जनपद रामपुर में मत्स्य विकास की स्थिति
जनपद रामपुर में ग्राम सभा के कुल तालाबों की संख्या 1025 तथा रकबा 696-921 हेक्टेयर है। जिनमें से मत्स्य पालन योग्य आवंटित तालाबों की संख्या 449 व रकबा 375-519 हेक्टेयर है। तथा निजी तालाब लगभग 120 हैं जो कि 95 हेक्टेयर के हैं। जनपद में कुल 40 हैचरी है जो कि लगभग 125 हेक्टेयर में विस्तारित है।
पूर्व वर्षों में जनपद रामपुर में मत्स्य पालक अपने तालाबों में पारम्परिक तरीके से मत्स्य पालन का कार्य करते थे। जिसमें उनके द्वारा अपने तालाबों में बिना किसी तालाब के सुधार के तालाब में मछली रोहू] कतला तथा नैन के बच्चे का संचय जुलाई] अगस्त एवं सितम्बर माह में करके तालाब में बिना किसी इन्पुट्स का प्रयोग किये हुये मछली पालन का कार्य किया जाता था जिसमें उन्हें 1-0 हेक्टेयर के तालाब में 10 ls 15 कुं0 मछली का उत्पादन करके तालाब से 75 से 80 हजार रूपये मात्र का लाभ मिलता था। परन्तु गत पाँच वर्षों से जनपद में नीली क्रान्ति योजना] राष्ट्रीय कृषि विकास योजना आदि नयी योजनाएँ संचालित की गयी हैं तथा नयी तकनीक के साथ जनपद का मत्स्य पालक अपने तालाब को अप्रैल] मई एवं जून के माह में तैयार कराकर तालाबों में वैज्ञानिक तरीके से मत्स्य बीज रोहू] कतला] नैन] ग्रास कार्प तथा सिल्वर कार्प का संचय माह जून] जुलाई तथा अगस्त में करने के साथ-साथ मत्स्य बीज का भी उत्पादन तालाबों में इनपुट्स का प्रयोग करके कर रहा है जिससे मत्स्य पालक को 1-0 हेक्टेयर के तालाब लगभग 5-00 लाख से 6-00 लाख रूपये तक का लाभ लिया जा रहा है जबकि मत्स्य पालक अपनी निजी भूमि में कृषि का कार्य करने पर 3-0 ls 4-0 लाख रूपये तक का ही लाभ अर्जित करता था।
इस प्रकार किसान को खेती से मछली पालन करने पर लगभग 2-0 लाख रूपये का अधिक लाभ प्राप्त कर रहा है- जिससे जनपद के किसान मत्स्य पालन के कार्य की और बढ़ रहे हैं। मत्स्य पालक अपने 1-0 हेक्टेयर तालाब में निम्न इन्पुट्स का प्रयोग करके मत्स्य पालन (रोहू] नैन तथा कतला) कर सकते हैं-
क्र.सं. | मद | मात्रा | दर | धनराशि |
1 | मत्स्य बीज (फिंगरलिंग) | 15000 | 1-0 प्रति पीस | 15000.00 |
2 | गोबर की खाद | 20 टन | & | 2000.00 |
3 | चूना | 200 कि0ग्रा0 | 15 प्रति कि0ग्रा0 | 3000.00 |
4 | फर्टिलाइजर | 250 कि0ग्रा0 | 10@& | 2500.00 |
5 | पानी की भराई | अनुमानित | & | 40000.00 |
6 | मत्स्य पूरक आहार | 20 कु0 | 30@& | 60000.00 |
7 | लेबर कास्ट | अनुमानित | & | 20000.00 |
8 | अन्य | अनुमानित | & | 7500.00 |
योगः- | 150000.00 |
आर्थिक विश्लेषण (1-0 हेक्टेयर तालाब से) | |
कुल मत्स्य उत्पादन | 6000 कि0ग्रा0 |
मूल्य | 120@ कि0ग्रा0 |
मत्स्य उत्पादन कुल प्राप्त धनराशि | 72000-00 |
इन्पुट्स पर व्यय | 150000-00 |
शुद्ध लाभ | 600000-00 |
मत्स्य पालक द्वारा अपनी जमीन पर तालाब बनाने में लगभग 3-50 लाख से 7-00 लाख तक का व्यय करता है जो कि केवल ओर एक ही बार तालाब का निर्माण मत्स्य पालक द्वारा किया जाता है जब तक की वह मत्स्य पालन का कार्य करता है।
जनपद रामपुर के विकास खण्ड मिलक में लगभग 40 हैचरियां है जो कि मत्स्य पालक द्वारा अपनी निजी भूमि पर विकसित किया गया है तथा वैज्ञानिक तरीके से कार्य करके हैचरियों में मत्स्य बीज रोहू] नैन] कतला] ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प तथा कामन कार्प का उत्पादन किया जा रहा है। एक हैचरी पर माह जून, जुलाई, अगस्त, सितम्बर के माहों में लगभग हैचरी स्वामी द्वारा 1.50 करोड़ से 2.0 करोड़ तक का मत्स्य बीज उत्पादन करके लगभग 10 लाख से 12 लाख तक की इनकम कर ली जाती है जो कि कृषि कार्य से लगभग दोगुना से भी अधिक है।
जनपद रामपुर के विकास खण्ड मिलक में इतनी अधिक हैचरी होने का कारण है कि वहां की मिट्टी बहुत अधिक चिकनी है जिसमें पानी आसानी से रूक जाता है जो कि हैचरी के लिये उपयुक्त है। विकास खण्ड मिलक, बिलासपुर, शाहबाद, टाण्डा एवं स्वार के ग्रामों में मत्स्य पालन एवं मत्स्य बीज का उत्पादन किया जा रहा है। चूंकि जनपद रामपुर एनसीआर दिल्ली के नजदीक है, अतः यहां के मत्स्य पालक अपनी मछलियों को बेचने हेतु दिल्ली की गाजीपुर मण्डी, गजरौला तथा किच्छा मण्डी उत्तराखण्ड जनपद रामपुर के नजदीक होने के कारण मत्स्य पालन अपनी मछलियों के उचित दर पर बेचने के लिये जाते है। इस प्रकार मत्स्य पालकों को मछली बेचने में कोई दिक्कत नहीं है।
विकसित की गयी हैचरियों के स्वामियों द्वारा उत्पादित मत्स्य बीज को जनपद के साथ प्रदेश में तथा अन्य प्रदेशों में भी मत्स्य बीज की बिक्री करते हैं। जनपद रामपुर मत्स्य बीज उत्पादन में प्रदेश में प्रथम स्थान पर है।
मत्स्य रोग- सामान्तयः मछलियों में विभिन्न प्रकार के रोगों का अतिक्रमण मुख्यतः तीन घटकों यथा उपस्थित रोगाणु, जलीय वातावरण द्वारा उत्पन्न तनाव एवं इनके सम्पर्क में रहने वाली मछलियों की संवेदनशीलता पर निर्भर करता है।
मत्स्य रोग सामान्य लक्षण- जब भी तालाब की मछलियां किसी रोग की चपेट में आती हैं तो इनमें अनेक तरह के परिवर्तन परिलक्षित होते हैं। जैसे- व्यवहारिक लक्षण, शारीरिक लक्षण व आंतरिक लक्षण।
1- मछली का जुआं (आर्गुलस)- आर्गुलस परजीवी द्वारा फैलाया जाने वाला रोग है जो सामान्तयः आर्गुलोसिस अथवा मछलियों में जुआं की बीमारी के नाम से जाना जाता है। इस परजीवी के मुख में जहरीली ग्रंथि पायी जाती है जो मछली के शरीर से रक्त चूसती है।
उपचार
1- 1 ग्राम पोटेशियम परमैगनेट को 10 लीटर पानी में घोलकर रोगग्रस्त मछली को दो से तीन मिनट तक इस घोल में डुबोकर रखने में लाभ होता है।
2- तालाब में 200 कि0ग्रा0 प्रति हे0 के हिसाब से चूने का प्रयोग भी तालाब में आरगुलोसिस के नियंत्रण में सहायक होता है।
2- लाल घाव की बीमारी- यह बीमारी अनेक नामों से जानी जाती है जिसमें अलसरेटिव सिंड्रोम, एपिजुटिक सिंड्रोम आदि। बरसात के बाद के महीनों एवं जाड़ों में इसका प्रकोप अधिक होता है। रोहू, कतला, नैन, ग्रास कार्प आदि में लाल घाव प्रकट होते हैं। लाल घाव का शरीर पर होना इसका प्रमुख लक्षण है।
उपचार
1- चूने की 200 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर की मात्रा का एक सप्ताह के अन्तराल पर 2-3 बार छिड़काव अत्यन्त लाभप्रद पाया गया है।
2- सिफेक्स दवाई का प्रयोग इस बिमारी की रोकथाम के लिये प्रभावी है।
3- मछली की जलोदर बीमारी- यह बीमारी जिवाणु एरोमोनास हाइड्रोफिला से होती है। इस रोग से मछलियों की आंत एवं बाह्य त्वचा के बीज द्रव्य भर जाता है और पेट फूल जाता है तथा शल्क भी धीरे-धीरे निकलने लगते हैं। भाकुर एवं कामन कार्प में अधिक होती है।
उपचार
1- रोगग्रस्त मछलियों को तालाब से यथाशीघ्र बाहर निकाल लेना चाहिए।
2- तालाब की मछलियों को संतुलित आहार नियमित रूप से देना चाहिए।
4- पंख एवं पूंछ की सड़न- यह बीमारी भी एरोमोनास हाइड्रोफिला द्वारा फैलती है। बरसात के दिनों में इसका अधिक प्रकोप होता है। तालाब में अधिक मात्रा में मत्स्य बीज संचय तालाब में कीचड़ की मात्रा एंव पूरक आहार का कम होना इसके मुख्य कारण हैं। रोगग्रस्त मछलियों के पंख एवं पूंछ सड़के गिरने लगते हैं।
उपचार
1- तालाब में 200 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से चूने का प्रयोग।
2- एक मि0ग्रा0 प्रति लीटर की दर से पोटेशियम परमैगनेट तालाब में डालने से इसके निवारण में मदद मिलती है।
3- 1 मि0ग्रा0 प्रति ली0 की दस से ब्लीचिंग पाउडर का प्रयोग करने से इस रोग के उपचार में मदद मिलती है।
भारत सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा मत्स्य विभाग जनपद रामपुर में प्रधान मंत्री मत्स्य सम्पदा योजना का संचालन वर्ष 2020-21 में किया गया है जिसमें निम्न उपयोजनाएं संचालित की जा रही हैं तथा लाभार्थियों को 40से 60 प्रतिशत तक का अनुदान भी देय है-
1-निजी भूमि पर तालाब निर्माण मत्स्य पालन-
मत्स्य पालक अपनी निजी भूमि 0.2 हेक्ट0 से 2.0 हेक्ट0 तक तालाब निर्माण कराकर मत्स्य पालन का कार्य कर सकता है जिसमें 1.00 हेक्ट0 के तालाब निमार्ण की लागत रु 7.00 लाख है।
मत्स्य पालक अपनी 2-00 हेक्ट0 की निजी भूमि पर हैचरी निर्माण कराकर मत्स्य बीज उत्पादन का कार्य कर सकते हैं। 1 हैचरी निर्माण की लागत रु 25-00 लाख है।
बायोफ्लाक-
यह एक नयी तकनीक है जिसमें कम भूमि पर बायोफ्लाक स्थापित करके मत्स्य पालक अधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं। चूंकि पूर्व में मत्स्य पालक तालाब खोदकर तालाब में परम्परागत तरीके से खेती करते थे जिससे उन्हें रु 2-00 से रु 2-50 लाख तक का लाभ 1-0 हेक्ट0 के तालाब पर मिलता था परन्तु इस तकनीक का प्रयोग करके एक साल में दो बार मछलियों को निकालकर रु 8-00 लाख से रु 10-00 लाख तक का लाभ ले सकते हैं। 25 टेंक 4X4 डायमीटर के बायोफ्लाक विद इन्पुट्स की लागत रु 14-00 लाख है।
सर्कुलेटरी सिस्टम-
यह एक वृहद बायोफ्लाक का ही रूप है जिसमें बायोफिल्टर एवं एरियेटर स्थापित करक एक साल में दो बार मछलियों को निकालकर रु 10-00 लाख से रु 12-00 लाख तक का लाभ मत्स्य पालक अर्जित कर सकते हैं। 8 टैंक 8X8 डायमीटर के आर0ए0एस0 की लागत रु 50-00 लाख है।